लेखक की कलम से

फौलाद …

पहले मैं मोम थी,

अब फौलादी हो चुकी हूँ

पिघलते – पिघलते,

अब जम सी गई हूँ.!

गंदी नियत से देखने की,

गुस्ताखी न करिएगा जनाब

सिर्फ, तीखी आँच से ही,

ना झुलसा दूं तो कहना.!

पहले मैं मोम थी,

अब फौलादी हो चुकी हूँ

पिघलते पिघलते,

अब जम सी गई हूँ.!

तलवार से भी तीखी,

धार है जिसकी

छूने की भूल,

ना कीजिएगा जनाब

सिर्फ, एक वार से ही,

नामोनिशान मिटा दूं तो कहना.!

पहले मै मोम थी,

फौलादी हो चुकी हूँ

पिघलते पिघलते,

अब जम सी गई हूँ.!

शेरनी से भी हिंसक,

चाल है जिसकी,

शिकार करने की कोशिश,

ना कीजिएगा जनाब

सिर्फ गरजती आंखों के तूफान से ही,

तबाह ना कर दूं तो कहना.!

पहले मैं देह थी,

अब दिमाग हो चुकी हूँ.!

पहले मैं महान थी,

अब मैं आम हो चुकी हूँ.!

पहले मै मोम थी,

अब फौलादी हो चुकी हूँ

पिघलते पिघलते,

अब जम सी गई हूँ.!

 

 

©अंकिता पाण्डेय, सहायक प्राध्यापक, डीएलएस कॉलेज, बिलासपुर    

 

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