ज्ञान, विद्या …
जीवन है एक ज्ञान यात्रा,
हर पल ही सीखना है,
सीखना हर कण से ही,
ज्ञानवान जो बनना है।
एक है वो ज्ञान जो
भाषा ज्ञान सिखाता हैं,
जिसके ज्ञान से एक प्राणी,
दूजे से बात कर पाता है।
एक है वो मौन की वाणी,
ज्ञान,अद्भुत जो देती हैं,
प्रेम की भाषा जो सिखा,
दिलो में प्रेम भर देती हैं।
हर कण कण में गुरु तत्त्व,
जो पल पल ज्ञान कराता हैं,
हर जीव यहाँ कुछ विशेष,
ज्ञान सिखा जाता है।
देख दिया जो गुरु तत्त्व जो,
शिक्षा कदम बढ़ाती हैं,
सिखा सीखा फिर हर तत्त्व से,
वो तो निपुण बनाती हैं।
न होता फिर कोई बंधन,
ज्ञान अर्चन करने में,
जी लिया जो गुरु तत्त्व में,,
कण कण से सीखने में।
ज्ञान है एक सतत यात्रा,
हर पल ही जो चलती है,
बनता यहाँ हर कण गुरु,
ज्ञान विद्या ये कहती हैं।
चलो चले फिर ज्ञान यात्रा पर,
हर कण कुछ सिखा रहा,
पुष्प हो या फिर चींटी,
जीवन मर्म बता रहा।
सीख लिया जो ज्ञान में जीना,
कण कण में गुरु फिर मिलते हैं,
जीवन जीने की कला,
बस इसे ही कहते हैं।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी