लेखक की कलम से

उपमान की खोज में राहुल

राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को “भारत का चेम्बरलेन” बताया। बड़ी यादगार टिप्पणी की। ब्रिटेन के नेविल चेम्बरलेन (1937-40) प्रधान मंत्री थे जिन्हें एडोल्फ हिटलर ने धोखा दिया था। युद्ध विराम संधि के बाद चेकोस्लोवाकिया तथा पोलैंड पर कब्ज़ा कर लिया। नतीजन प्रवंचित चेम्बरलेन को पदत्याग करना पड़ा था। बुलडॉग शक्ल के विंस्टन चर्चिल प्रधान मंत्री बने। उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध जीता।

अर्थात चीन (नाजी जर्मनी की भांति) मोदी की नियति बन सकता है। राहुल के अनुमान में। उनके गुजराती सांसद अहमद पटेल याद भी दिला चुके हैं कि मोदी अबतक नौ बार चीन जा चुके हैं, चार बार मुख्यमंत्री के रूप में। मगर पाया कम, खोया ज्यादा। मोदी 17 सितम्बर 2014 (अपने 64वें जन्मदिन पर) को शी जिनपिंग का अपने ग्राम वडनगर में स्वागत भी कर चुके हैं। शी के गाँव का ही ह्वेन सांग मोदी के गाँव की यात्रा सदियों पूर्व कर चुका था। यही नजदीकियां अगर दूरियां बनती गयीं तो ?

नयी बनी आत्मीयता के बावजूद, गत माह चीन की जनमुक्ति सेना ने पूर्वी लद्दाख में बीस भारतीय सैनिकों को मार डाला तथा 64 वर्ग किलोमीटर भूभाग हथिया लिया। इसीलिए भाजपा सरकार के इस अपराध पर ही कांग्रेस के युवा अगुवा (50 वर्षीय) राहुल गांधी ने मोदी को चेम्बरलेन कहा, जो ब्रिटेन का घृणित और निन्दित प्रधान मंत्री रहा था।

यूं तो राहुल को अपने जन्म (19 जून 1970) से तीस वर्ष पूर्व वाले द्वितीय विश्व युद्ध के हादसे की याद ताजा है। मगर अपने पैदाइश के सिर्फ 8 वर्ष बाद की बात वे सुगमता से भूल गए। राज्यसभा में (20 अक्टूबर 1962, संध्या 4 बजे) भारतीय जनसंघ के छत्तीस-वर्षीय अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी दादी के पिता को चेम्बरलेन नाम से विभूषित किया था । बहत्तर-वर्षीय जवाहरलाल नेहरु तबतक पूर्वोत्तर भारत में चीन के साथ युद्ध में पैंतालीस हजार वर्ग किलोमीटर भूभाग हार चुके थे। चौदह सौ सैनिक मरे थे, हजार घायल हुए, चार हजार को चीन ने बंदी बना लिया था। भारत की इतनी दयनीय अधोदशा स्वतंत्रता के पश्चात् पहली दफा हुई थी। अतः तुलनात्मक आंकलन में मोदी “नन्हें चेम्बरलेन” ही होंगे। नेहरु तो कई गुना विशाल।

चूँकि कॉलेज शिक्षा से राहुल गांधी वंचित रहे हैं, अतः ब्रिटिश प्रधान मंत्रियों के विषय में ज्यादा पठन उनका नहीं हो पाया होगा। तो नेविल चेम्बरलेन की चन्द भली बातों से भी अवगत हो जाएँ । हम श्रमजीवियों की दृष्टि से इस युद्ध-विफल प्रधानमंत्री ने दो अत्यंत मानवीय कानून बनवाए थे। फैक्ट्री एक्ट 1937 को संसद में पारित कर सप्ताह में सातवें दिन अनिवार्य अवकाश का दिन घोषित किया। सवेतन वार्षिक छुट्टी का भी प्रावधान किया। भारत में पूंजीपतियों के दबाव में मोदी सरकार ने पिछले महीनों में इन श्रम कानूनों को नष्ट कर दिया, क्लीव बना डाला।

उपमान के तौर पर मोदी के मुकाबले दो अन्य ब्रिटिश प्रधान मंत्रियों का उल्लेख भी हो जाय। खुदा ना खास्ता, गाहे बगाहे, कहीं, किंचित, कभी अगर राहुल गांधी भारत के प्रधान मंत्री बन बैठे, तो उन्हें सर राबर्ट वालपोल (1721-42) तथा एलेक डगलस ह्यूम (1963-64) का अनुकरणीय नमूना जांचना होगा।

वालपोल की शासन नीति कांग्रेसी प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव जैसी थी। निष्क्रियता में ही क्रियाशीलता होती है। अर्थात निर्णय न लेना भी एक मायने में निर्णय लेने जैसा ही होता है। वालपोल के सूत्र थे कि कुत्ता अगर सो रहा हो तो उठाइए मत, वरना भौंक कर सबको जगा देगा। इसी प्रकार चीन सोता हाथी है, उसे सोने दो। आज भारत इसे भली भांति महसूस कर रहा है। नरसिम्हा राव के मौन का ही परिणाम है कि आज राम को ठौर मिल रहा है।

अगला उदाहरण है डगलस ह्यूम का। उनकी पत्नी एलिजाबेथ कहती थीं कि “भूकंप अथवा युद्ध भी मेरे पति को डुला नहीं सकते हैं। मगर ट्रैफिक जाम में वे गुस्सैल हो जाते हैं। ” ह्यूम जब विदेश मंत्री थे तो भारत आये थे। तब नेहरु सरकार के विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह से मिले थे। कलकत्ते भी आये थे। उस वक्त बम्बई से मुझे पश्चिम बंगाल विधान सभा की रिपोर्टिंग के लिए टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने प्रशिक्षण पर भेजा था। डगलस ह्यूम की प्रेस वार्ता हुई थी । मैंने ध्यान से सुना। चीन के आक्रमण पर ह्यूम स्पष्ट रूप से बोले थे। भारत के पक्ष में ही। तात्पर्य यही कि प्रधान मंत्री बनने पर राहुल गांधी हेतु डगलस ह्यूम के धीरज और सहनशीलता के गुण मददगार होंगे। अब नरेंद्र मोदी पर रोज राहुल गांधी के अर्थहीन हमलों से जाहिर है कि वे अपना कद बढ़ाने का यत्न कर रहे हैं।

दिग्गज भाजपायी नेता लोग भंग लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज को प्रधान मंत्री बनाना चाहते थे। पर मोदी ने बढ़त ले ली। इसी सन्दर्भ में राहुल को एक और वाकये से अवगत होना चाहिए।

सोवियत संघ के याल्टा सैरगाह में द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में एक सुबह नाश्ते पर अमरीकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और रूसी तानाशाह जोसेफ स्टालिन बैठे थे। रूजवेल्ट ने बताया कि गत रात उन्होंने सपना देखा कि विश्व सरकार निर्मित हुई है और वे उसके राष्ट्रपति बने हैं। चर्चिल ने कहा कि उन्होंने भी ठीक ऐसा ही सपना देखा। बस फर्क यह था कि वे इस विश्व सरकार के प्रधानमंत्री बने हैं। दोनों पर मुस्कराते हुए स्टालिन ने अपनी पाइप से राख झाड़ते हुए पूछा, “और तुम दोनों को राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री नामित करने वाला कौन था ?”

 

तो राहुल गांधी को स्टालिन के सवाल का जवाब तलाशना होगा। कारक कौन बनेगा ?

नेहरु और इंदिरा गांधी तो अपनी मेहनत और भागदौड़ के फलस्वरूप प्रधानमंत्री बन गए। राजीव गांधी ने तो अपनी माता के प्राणोत्सर्ग के बाद घनघोर दावेदार प्रणव मुखर्जी को बाहर कर दिया था और पीएम पद पा लिया। सोनिया के पीएम बनते-बनते उनका प्याला ओठों से छूकर फिसल गया था।

अतः राहुल गांधी के पास क्या उपाय या साधन होंगे ?

न संख्याबल है, न दल बचा, साथी बिखर गए। शायद चेम्बरलेन की भांति उनकी भी लाटरी निकल आये ! चेम्बरलेन के स्टेनली बाल्डविन और विंस्टन चर्चिल जैसे प्रबल प्रतिस्पर्धी भी थे। राहुल गांधी से उनकी सियासी सरगोशियों के बीच जिंदगी ऐसा सवाल तो करेगी ही।

   ©के. विक्रम राव, नई दिल्ली   

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