लेखक की कलम से

अध्यात्म के मोती …

पंच भूत से जो रची,,

 

वो मूरत है आप। ।।

 

आप आप को जान ले ,,

क्यों फिरता जंग नाप

 

रात रात जग जग पढ़ा,,

जगा न पाया आप ।।

 

जो जागे तू आप में,,

तभी मिटे संताप ।।

 

जीवन मोती पाइए,,

गहरा गोता खाय ।।

बैठ किनारे क्या मिले,,

हाथ कछु न आय ।।

 

बाहर बाहर ताकता,,

अभी तो अंदर झांक ।।

 

अंदर जो मोती मिले,,

कीमत कम मत आंक ।।

ढाई आखर छोड़िए,,

खुद को पढ़िए जांच ।।

 

जब तू ही मैं को बांच ले,,

तब ढाई आखर सांच ।।

 

तेरे घट तू ना टीके ,,

शठ बैठे पच्चीस।।

 

शठ हटे घट तू टिके,,

तब मिलते जगदीश ।।

 

©जाधव सिंह रघुवंशी, इंदौर

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