मेरी कविता…
अगर आना हैं तुम्हें मेरे जीवन में
तो तुम्हें पढ़नी होंगी
मेरी कविताएँ…
मेरे व्यक्तित्व से जो जुड़ी हैं
मेरी पहचान की तरह।
तुम्हें देखना होगा
शमशान का वो दृश्य
जहाँ बिलख रहीं होंगी स्त्रियाँ,
जिनके प्रिय की चिता की आग
उनमें जल रही होगी,
और वो खड़ी होंगी फिर भी
जीने के लिए मरते हुए।
तुम्हें झेलनी होंगी आंतरिक वेदना
जिनमें एक अंतर्मुखी व्यक्ति
चुपचाप सह रहा होगा
कुछ ना बोल पाने की पीड़ा।
तुम्हें महसूस करना होगा
अकेलापन
और उस अकेलेपन में
पनप रहे रहस्यों की गुत्थियाँ
सुलझानी होंगी।
मेरी कविताओं को लिक्खा हैं मैंने
स्याह रंगों से,
तुम्हें उनमें विचलित हुए बिना
उजाला तलाशना होगा।
कटे हुए साखों को इकट्ठा करके
जोड़ना होगा दरख्तों से,
और बना देना होगा
एक परिवार।
उन कविताओं में घुले हुए
ज़हर को पीना होगा,
और स्वयं वैद्य बन कर
करना होगा अपना उपचार।
भँवर में नौका उतार कर
चलानी होगी पतवार,
अपना ही कर्णधार बनना होगा
मेरी कविताओं में।
तुम्हें मिलेगा एक घना वन
जहाँ पहुँच कर बचना होगा
जानवरों से,
करनी होगी आत्मरक्षा
उन्हें मारे बिना।
मेरी कविताओं की चुभन से
यदि बच गये तुम,
तो तुम्हारा स्वागत होगा
मेरे जीवन में।
©वर्षा श्रीवास्तव, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश