लेखक की कलम से
राखी में आ जाना ….
सुन चंदा भैय्या से कहना,
तेरी राह तके बहना।
राखी में आ जाना,
राखी में आ जाना ।।
माना तेरी,मेरी दूरी है,
ऐसे भी क्या मजबुरी है।
राखी की रसम याद रखना,
कसम याद रखना।।राखी में —
जिस भाई का बहन न होते,
आँसू बहाते दिन भर रोते।
सुनी है क्यूँ मेरी कलाई,
क्यूँ आँखभर आईं।।राखी में—–
बहन का प्यार,रेशम का धागा,
जो न पहनें वो है अभागा।
सुन लेना बहन की पुकार,
रास्ता मैं देखूं बारबार।।राखी में —-
जैसा नाता धरती गगन का,
वैसा रिश्ता भाई बहन का।
मन में आये न कोई दरार,
बढ़े नित प्यार।।राखी में ——
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)