लेखक की कलम से

किसनहा बेटा बन जातेंव ….

सुत उठ के बड़े बिहनिया,

धर के नांगर खेत म जाथों।

करम के मेंहा बिजहा बोथों,

ये माटी के बेटा कहाथों।।

 

खेलत रिथों दिनभर मेंहा,

का धुर्रा का चिखला पानी।

इही मोर बर गीता रमायन,

येकरे संग बधे हों मितानी।।

 

कतको दुख पीरा ल संगी,

इंहा आके मेंहा भूल जाथों।

हरियर-हरियर डोली ल देख के,

झुमके मेंहा गाना गाथों।।

 

बतर,बियासी,निंदई,कोडाई,

जांगर टूटत ले मेंहा कमाथों।

बासी,चटनी खाके संगी,

अपन जिवरा ल मेंहा जुडाथों।।

 

नांगर,बैला,कोप्पर, बेलन,

इही हरे मोर संगी जहुरिया।

इही हरे मोर मथुरा काशी,

इही हरे मोर भव के तरइया।।

 

येहा हरे मोर पुरखा के चिन्हा,

इही हरे मोर रोजी रोटी।

येकर परसादे फुदरत रिथे,

मोर घर के सब बेटा बेटी।।

 

जब-जब जन्मों ये भुइँया म,

किसनहा बेटा बन जातेंव।

अन्नदाता बन अन्नपूर्णा के,

मेंहा सुग्घर भाग जगातेंव।।

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)            

Back to top button