लेखक की कलम से

वृहद शब्दकोष…

जिंदगी की वेदनाओं को

परिभाषित करने की चाह में

खंगाल लिए हैं कई शब्दकोश।

 मातृभाषा की पांडुलिपि से इतर भी देखा अक़्सर

 नहीं मिलती perfect परिभाषा इन पर…

संगीत में खोजा, हर राग पर गुनगुना कर देखा

नहीं बन पाई कोई एक धुन सलीकेदार

हाँफते हाँफते थक गई मैं

गला रुंधा कई बार, सुनो फिऱ भी नहीं बन सकी

उसे परिभाषित करती रागिनी..

आयतें पढ़ीं, गीता में भी ढूंढा, रामायण के साथ

 महाभारत की गाथा पढ़ी

पर सुनो व्यथा, वेदनाओं की परिभाषा

हर बार अलग ही मिली..

आँसुओं में महसूस किया

अट्ठहास में भी, चीत्कार में ढूंढा

इंतज़ार को सहेजा, प्रेम को पुकारा

पर व्यथा वेदना नफ़रत में भी नहीं मिली..

 बस जिंदगी की वेदनाओं को परिभाषित

करने को ढूंढ रही हूँ एक अलहदा पांडुलिपि का

वृहद शब्दकोष…

©सुरेखा अग्रवाल, लखनऊ               

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