लेखक की कलम से
जिंदगी …
जिस्म से जान जब निकलती होगी।
पलभर जाने आंखे सिसकती होगी।
अपने पराए सबको एक नज़र से कहीं;
नज़र रह रहकर फिर यूंही तक़ती होगी।
छोटा सा जहां जो बनाया आस से;
उसे देख कर थोड़ा तो मचलती होगी।
जिनसे बिछड़ कर रह न पाते थे कभी;
सब छोड़ जाना रूह भी हिचकती होगी।
कैसी ये ज़िन्दगी है समझा न कोई इसे;
छोड़ ये जहां फिर कैसे सिमटती होगी।
©कामनी गुप्ता, जम्मू