नई दिल्ली

इस समझौते को न खारिज करते पंडित नेहरू तो आज चीन के साथ न होता पाकिस्तान, खुद पाक ने की थी अपील …

नई दिल्ली । पिछले कुछ सालों से लगातार कहा जा रहा है कि पाक और चीन भारत के खिलाफ गठबंधन कर चुके हैं। पाकिस्तान ने एक बार भारत को चीन के खिलाफ मोर्चे में शामिल होने की अपील भी की थी लेकिन बात बनी नहीं। ऐसे में भारत को पश्चिमी बॉर्डर के साथ ही उत्तर और पूर्व में भी एक साथ युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन आपको पता है पाकिस्तान कभी चीन के विरोध में खड़ा रहता था। आइए पूरी कहानी जानते हैं।

चीन ने जब तिब्बत पर हमला कर उसे हथिया तो पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ गई थी। ऐसे में पाकिस्तान उस वक्त साउथ एशियन ट्रीटी आर्गेनाइजेशन (SEATO) और सेंट्रल ट्रीटी आर्गेनाइजेशन (CENTO) के साथ जुड़ गया। 1959 में पाकिस्तान के तानाशाह राष्ट्रपति अयूब खान सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के हुंजा और आसपास के क्षेत्रों में सैन्य घुसपैठ के लिए चीन को गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दे रहे थे क्योंकि चीन 1953 से इन इलाकों में घुसपैठ कर रहा था। वह चीन की विस्तारवादी पॉलिसी को लेकर सावधान थे।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि 10 सितंबर 1959 को अयूब खान इस्लामाबाद से ढाका जाते वक्त नई दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर रुके। यहां उन्होंने औपचारिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप की संयुक्त रक्षा का प्रस्ताव रखा था। इसका साफ़ मतलब चीनी के खिलाफ भारत-पाकिस्तान रक्षा सहयोग था।

ज्योतिन्द्र नाथ दीक्षित भारत के विदेश सचिव रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी रहे। उन्होंने ‘युद्ध और शांति में भारत-पाकिस्तान’ किताब में चीन के खिलाफ पाकिस्तान और भारत के बीच संयुक्त रक्षा समझौते के बारे में लिखा है। किताब में दीक्षित ने लिखा है कि अयूब ने 24 अप्रैल 1959 को एक संयुक्त रक्षा समझौते का प्रस्ताव रखा था। बता दें कि मार्च 1959 में चीन द्वारा तिब्बत पर हमले के बाद दलाई लामा भारत में शरण लेने पहुंचे थे।

दीक्षित ने जापान में पाकिस्तान के तत्कालीन राजदूत का एक ब्यान छापा है जिसमें मोहम्मद अली ने कहा था- तिब्बती मुद्दे ने एशियाई लोगों को उनकी शालीनता से झकझोर दिया है। लाल साम्राज्यवाद के खतरे के लिए एशिया की आंखें खोलनी चाहिए।

लेकिन भारत के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू ने अयूब के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। मामले को लेकर नेहरू ने लोकसभा में कहा था- हम एक सामान्य रक्षा नीति नहीं चाहते हैं, जो करीब-करीब किसी तरह का सैन्य गठबंधन हो। दीक्षित ने कहा है कि नेहरू संयुक्त रक्षा समझौते के बारे में सावधान रहे होंगे। उन्होंने अयूब के इस प्रस्ताव को शायद जम्मू-कश्मीर पर एक समझौते के तौर पर देखा।

दी वीक की रिपोर्ट बताती है कि नेहरू ने 1948 में पाकिस्तान द्वारा जम्‍मू और कश्‍मीर पर हमला किए जाने के बाद 1949 में पाकिस्‍तान के सामने ‘नो वॉर’ समझौते की पेशकश रखी थी, जिसे पकिस्तान ने ठुकरा दिया था। एक्सपर्ट्स यह भी मानते हैं कि नेहरू और तत्‍कालीन भारतीय सेना प्रमुख केएस थिमैया के बीच असहमति के कारण भी अयूब खान का प्रस्‍ताव ठुकरा दिया गया था।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे अजीज अहमद और अमेरिकी अधिकारियों के बीच फरवरी 1963 में भी इस तरह की बातचीत हुई थी। इस बातचीत का निचोड़ यह था कि पाकिस्तान लद्दाख और कश्मीर वाले इलाके की रक्षा करे और भारत अरुणाचल प्रदेश वाले क्षेत्र की। ऐसे में भारतीय उपमहाद्वीप सुरक्षित रहेगा।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि 1962 भारत-चीन युद्ध के बाद तत्कालीन ब्रिटिश पीएम हेरोल्ड मैकमिलन ने कहा था कि भारत को चीनी आक्रमण के खिलाफ रक्षा समझौता करना चाहिए। यह तभी संभव है जब भारत और पाकिस्तान एक साथ आएं। ऐसे में यह अधिक प्रभावी हो सकता है। इससे हमारी भी परेशानी कम होगी कि हम पाकिस्तानियों को परेशान किए बिना भारतीयों की मदद कर सकते हैं।

हालांकि 1959 के बाद संयुक्त रक्षा समझौते की संभावनाएं फीकी पड़ने लगीं क्योंकि पाकिस्तान और चीन ने संबंध बनाए और अपने सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिश की। पाकिस्तान ने इसी वक्त से चीन-भारत संबंधों में गिरावट का फायदा उठाना शुरू कर दिया था।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि 17 जुलाई 1963 को जुल्फिकार अली भुट्टो ने पकिस्तान की नेशनल असेंबली में कहा था कि भारत के साथ युद्ध के मामले में पाकिस्तान अकेला नहीं होगा। एशिया का सबसे शक्तिशाली देश पाकिस्तान की मदद करेगा।

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