लेखक की कलम से

शबनमी सुबह मुबारक…

कुछ लिखूं या कुछ ना लिखूं

फिर सोची कुछ क्यों न लिखूं

जग सोचे कुछ भी ऐसा वैसा

सच को सच झूठ को झूठ लिखूं!

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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