लेखक की कलम से

अलविदा उत्तराषाढ़ नक्षत्र….

रजाई की तपिश भरा नमस्कार

किसकी बात करूं मैं किससे आपस में सब ही उलझे हैं
देख परखकर जान लिया बन्दर भी खुद को शेर समझे हैं
समझदार समझ ही जाते नहीं उन्हें कुछ बतलाना
उम्र बीत गई फिर भी देखो किस्से कितने अनसुलझे हैं
किसकी बात करूं मैं किससे आपस में सब ही उलझे हैं!

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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