लेखक की कलम से

हिंदी पखवाड़ा पर हिंदी की दिशा और दशा …

आज एक बार फिर हम हिंदी पखवाड़ा मनाने जा रहे है और एक प्रश्न मन को दुखी करता है क्या हमारी हिंदी मात्र एक पखवाड़े से ही बची रह सकती हैं या हमे इसके जीर्णोद्धार के लिए सतत ध्यान देने की आवश्यकता है। आज इसी विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करने जा रही हूँ। कुछ गलती हो तो अग्रिम क्षमा चाहूँगी।

एक बार फिर हिन्दी दिवस पर सैकड़ों आयोजन किये जा रहे हैं। जिनमें हिन्दी के बढ़ते महत्व पर व्याख्यान दिए फिये व छापे जा रहे हैं तो कहीं हिन्दी की गिरावट पर चर्चा होती भी देखी जा रही हैं इसके बाद हम फिर पूरे साल हिन्दी की उपेक्षा करने लगेंगे करेंगे। बस यही तो आज प्रचलन हैं हम बाते बड़ी बड़ी तो करते है पर वो दिखावा मात्र ही।

हम अपनी भाषा की उपेक्षा क्यों करने लग जाते हैं, जबकि पश्चिमी देशों में हिन्दी पढ़ाए जाने पर हमें गर्व होता है। यह हिन्दी के लिए अच्छा है कि आज दुनिया के करीब ११५ शिक्षण संस्थानों में हिन्दी का अध्ययन हो रहा है। अमेरिका, जर्मनी में भी हिन्दी को पढ़ाया जा रहा है। हमें अन्य देशों से सिखना चाहिए कि कैसे वह अपनी भाषा के साथ ही अन्य भाषा को भी अपनाने की कोशिश करते हैं।

एक ओर हिन्दी लोकप्रिय हो रही है, लेकिन वहीं हिन्दी का स्तर भी गिरता जा रहा है। हम हिन्दी की स्थिति को जानने के लिए अखबारों, न्यूज चैनलों का सहारा लेते हैं। आज हिन्दी अखबारों के भले ही करोड़ो पाठक है। जिससे यह कहा जाता है कि हिन्दी फल-फूल रही है, जबकि हिन्दी की स्थिति अच्छी नहीं है, क्योंकि आज अखबारों में हिंग्लिश शब्दों का प्रचलन बढ़ रहा है। वहीं हिन्दी अखबारों में से आज आई-नेक्सट जैसे समाचार पत्र भी निकल कर रहे हैं। जो न तो पूरी तरह से हिन्दी और न ही पूरी तरह से अंग्रेजी है, जिसे युवा वर्ग काफी पसंद कर रहा है। हिन्दी अखबारों में कुछ अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग हो तो अच्छा है, लेकिन जब हिन्दी के आसान शब्दों के स्थान पर भी अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया जाए, तो स्थिति चिंताजनक हो जाती है। आज सोचनीय विषय हैं कि हम जो बोलते हैं क्या उसपर खरे उतरते हैं नही बिल्कुल भी नही आज हम में से कितने है जो अपने बच्चों को हिंदी मीडियम स्कूल में शिक्षा दिलाना चाहते है। बाद समय आजे पर बात भाषण तक लिखने तक ही क्यो सिमट जाती हैं।

हिंदी के उत्थान के लिए बाहर से कोई नही आएगा हम भारतीयों को ही इसकी पहचान बनानी होगी लाज बचानी होगी अपनी मातृभाषा की। तो आइए आज से वादा करते है कि हम सब सच्चे मन से हिंदी का सम्मान करेंगे बोलने में हींन भावना नही रखेगे । अपनी व अपनी भाषा को उच्च शिखर पर लेकर जायेगे। जय भारत जय हिंदी

“हिंदी मेरी आशा हैं

हिन्दी मेरी भाषा हैं

हिंदी का उत्थान करना

ये मेरी अभिलाषा हैं”।

 

©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद                                             

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