लेखक की कलम से

पुलकित उन सा प्राण नहीं है, मां सा कोई भगवान नहीं है …

 

कहते हैं मां से बड़ा कोई ओहदा नहीं होता और शायद वाकई में न हो, क्योंकि निस्वार्थ अपने बच्चे से प्रेम करने वाली एक मां ही तो होती है।

मां एक एहसास, असंख्य भावनाओं का पुंज है,

अंतःकरण के आंगन में यह बरबस छलक है पड़ता

मां के स्नेहिल स्मरण से प्राणों में पुलक आ जाती है

मां के प्यार का जीवनजल मुरझाए प्राणों को जीवंत कर देता है।

कहते हैं न की प्यार अंधा होता है। वाकई में अंधा होता है, क्योंकि मां अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को बिना देखे ही प्यार करने लगती है। मदर्स डे एक ऐसा ही अवसर है जब हर बच्चा अपनी मम्मी को खुश करने की प्लानिंग कर रहा होगा। लेकिन मां तो सारी उम्र हमें प्यार करती है। हमारे हर दिन को खास बनाती है तो क्यों उनके लिए कोई एक ही दिन हो, सारे दिन क्यों नहीं…???

क्यों हम सिर्फ एक दिन उनको स्पेशल महसूस या एक दिन क्यों सोचे की हम उन्हें कोई दु:ख न पंहुचाए, सलीके से बात करे। आखिर सिर्फ एक दिन ही क्यों, क्यों हमारे अंदर अब वो बचपन वाला डर नहीं रहा की मां के एक इशारे पर हम चुप हो जाए उनसे बहस न करे…???

दोस्तों मां एक अनमोल रिश्ता है। जिनके पास ये रिश्ता कायम है उन्हें शायद सही तरह से इस रिश्ते की एहमियत मालूम न हो। लेकिन जिनके सर पर उनकी मां का साया नहीं है ज़रा उनके बारे में सोचो मदर्स डे के दिन वो कैसा महसूस करते होंगे…???

जब चोट लगती थी तो मां की हल्की सी फूंक से ही सब ठीक हो जाता था। हम कैसे भी दिखते थे लेकिन मां को हम दुनिया के सबसे खुबसूरत बच्चें ही नज़र आते थे। भूख हो न हो हमे ज़बरदस्ती खाना खिलाया करती थी। कभी नाराज़ हो तो झट से मना लिया करती थी। कहीं जाने की इजाजत न मिले तो सबसे लड़ झगड़ के हमे खुश करती थी। खुद भूखी रहती थी पहले हमे खिलाया करती थी।

अगर मां एक गृहणी के साथ साथ बाहर काम करती तो भी शाम को थकी हारी हमारी सेवा में जुट जाती थी। इतना कुछ करने वाली मां को जब कोई औलाद सहारा नहीं देती तो जरा सोचिये उस मां पर क्या गुजरती होगी…???

9 महीने का दर्द और तकलीफ झेल कर हमें इस दुनिया में लाने वाली कभी अपने लिए नहीं सोचती हर वक्त इसी परेशानी में रहती है की कैसे मैं अपने बच्चे को खुश रखूं।

एक शिशु के पैदा होने के साथ एक मां का भी जन्म होता है। अपने वक्त में वो लड़की चाहे जैसी भी हो लापरवाह, जिद्दी, आलसी, गुस्सैल लेकिन जब वो एक मां बन जाती है तो वो हर चीज़ में एडजस्टमेंट करना सीख जाती है। धैर्य रखना सीख जाती है।

 

सोचो ! जरा कितना मजबूत ये रिश्ता होगा…???

 ऐसी आदतें जो किसी की डांट मार से न सुधरती हो और सिर्फ मां बन जाने से ये सारी आदतें धीरे धीरे कम होने लगे तो कितना गज़ब का ये रिश्ता होगा।

दोस्तों सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूँ मां को कभी मत रुलाना। बचपन में जब हम रोते थे तो हमारी मां भी रो जाया करती थी और आज भी ऐसा ही होता है। जो मां है तुम्हारे पास वो बेहद नायाब है। इससे बेहतरीन तोहफा ईश्वर की तरफ से और कुछ नहीं हो सकता। मां की एक दुआ आपकी जिंदगी बना सकती है…।

“दुनिया है तेज़ धूप, पर वो तो बस छाँव होती हैं, स्नेह से सजी, ममता से भरी, मां तो बस मां होती हैं”

 

 

मां के लिए चंद पंक्तियां …

“कर्तव्यों का बोझ नहीँ, कर्तव्यों का बोध है जिसको, वो मां है..

संघर्षोँ में रोष नहीँ, संघर्षोँ में जोश है जिसको, वो मां है..

थकावट का एहसास नहीँ, कामों में उल्लास है जिसको, वो मां है..

दु:ख बतलाने की भाषा नहीँ, बच्चे की खुशी की अभिलाषा है, वो मां है..।”

 

अब मां के लिए क्या लिखूं, मां ने तो खुद मुझे लिखा है।

जब हम बोलना भी नहीं जानते थे। तब भी मां हमारी बातों को समझ जाती थी।

फिर भी कभी- कभी हम कहते हैँ, मां आप छोडो आप नहीं समझोगे।

इस संसार में सभी रिश्तों में थोडा – बहुत स्वार्थ जरूर होता है परन्तु याद रहे, मां का प्यार नि:स्वार्थ होता है।

कोई भी मां, अपने बच्चे के जन्म के बाद रोने पर पहली और आखिरी बार खुश होती है। उसके बाद अपने बच्चों को हमेशा खुश देखना चाहिती है।

मां जैसा वास्तविकता में कोई नहीं…।

 

शब्द नहीं है, सार नहीं है,

 मां के बिन संसार नहीं है।

मां ही रब है, मां ही सब है,

मां की दुआ का पार नहीं है।।

©रीमा मिश्रा, आसनसोल (पश्चिम बंगाल)

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