लेखक की कलम से

नाम हरि का सुमिर मन रे …

भर गया स्वर्णिम किरण से,

आज ये आंगन तुहिन से।

बाल रवि को साथ लेकर,

चमक भर रोशन गगन से।

राज रजनी का मिटा है,

खुल रहे सारे नयन से।

भर गईं अनथक उमंगें।

स्फूर्त कर जाएंगी तन ये।

हो भी जा आशा निषेचित,

नाम हरि का सुमिर मन रे।।

©स्वर्णलता टंडन                      

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