लेखक की कलम से
नज़र…
नज़र के –
सामने भी रहकर
नज़र से कितने
दूर हो गये तुम
जो नजरें
इनायत हो जाती,
तो नज़र कुछ
साफ़ हो जातीं
झुकी नज़रों का
राज़ क्या है
नज़रें बदल ग़य़ीं हैं,
तुम्हारी
या मेरी नज़रों की
कोई ख़ता है
या फिर किसी की
ऩज़र लग गयी है
नज़रें उठा लो ,
जो झुकी झुकी हैं
बदली नज़र को, अपनी,
इस ओर कर लो
मुझको सज़ा दे दो,
गर मेरी खत़ा है
या फिर अपनी
नज़र दोष दूर कर लो
©राजीव भारती, राजीव भारती, गौतम बुद्ध नगर, नोयडा