लेखक की कलम से

सपनों की दुनिया …

हो धरती पर चहुं ओर खुशहाली।

हर बगिया में छाए हरियाली।

हो सम्पन्न हर बाग का माली।

सब ओर हो वर्षा पैसे वाली।

ऐसी हो दुनिया सपने वाली।

सुकूं हो वर्तमान में।

भविष्य की तनिक फिक्र ना हो।

रूकूं न थकूं जहान में।

परेशानी का जिक्र ना हो।

ऐसी हो दुनिया…..

चलें बढ़े -बढ़े चलें।

शान्ति चारों ओर पले

शहर हो या गाँव हो

न झगड़े ना तनाव हो।

ऐसी हो दुनिया…..

दंगा न द्वेष भाई हो।

एकान्त हो या तन्हाई हो।

भय की न गुमाई हो ।

न आपाधापी छायी हो।

ऐसी हो दुनिया….

मनुज-मनुज में प्यार हो।

मर मिटने को तैयार हो।

हो भोर या हो दिन ढ़ले।

बिटिया सुरक्षित जहाँ पले।

ऐसी हो दुनिया……..

सबके सपने साकार हो।

कही ना हाहाकार हो।

मेरे भारत का सत्कार हो

सत्य की जय-जयकार हो।

ऐसी हो दुनिया……..

तिरंगे की छांव हो।

ना दिलो पे कोई घाव हो।

एकता हो भाईचारा हो।

विश्व में प्रभाव हो।

ऐसी हो दुनिया…….

 

©सुधा भारद्वाज, विकासनगर, उत्तराखंड  

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