लेखक की कलम से

बच्चे का हृदय उद्गार …

माँ भरकर दे तुम एक भगोना

चावल पूरी और सब्जी दे साथ।

मैं भी इनको बांट कर आऊं

जो बैठा है अस्पताल में आज।।

लौटते लौटते बंटता आऊंगा

जो सड़क किनारे बेबस आप।

कुछ टुकड़े उसको भी देने

जो करने में लगा है दलाली आज।।

पल दो पल साथ खड़ा हो

 देखूँगा वर्दी वालों का कुछ क्रियाकलाप।

फिर अपनी नन्ही हाथों से

 सलामी भी दूंगा उनको आज।।

इतने में तुम सिलकर रखना

मुख पट्टी और सुरक्षा बस्त्र ।

पहन उसे मैं निकल पड़ूँगा

 ढूढने कॅरोना का मारक अस्त्र।।

कुछ जोड़ घटा गुणा भाग कर

तैयार करलूंगा एक दबाई खास।

फिर अपने जन मानस को

 पिला दूंगा वो दबाई खास।

घुटने टेक और हाथ जोड़कर

 कॅरोना करेगा मिन्नत बारंबार।

दुम दबा कर भागने को

वो कॅरोना फिर होगा बेताब।।

तब तक तुम पापा से कहकर

 करवा लेना माहौल तैयार।

ढोल मजीरे के थाप पर

 नाचेंगे फिर झूम के आप।।

©कमलेश झा, फरीदाबाद                                                               

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