लेखक की कलम से

बचपन वाली दीवाली ….

 

बचपन वाले त्यौहार मनाने को जी चाहता है।

फिर से बचपन की मस्ती वाले पल जीने को जी चाहता है।

कच्चे घरों में पक्के रिश्ते निभाते थे।

मिठाई से नहीं रिश्तों की मिठास वाले त्योहार मनाते थे।

आँगन की सफाई ,तुलसी की सेवा,

दादी के मीठे भजन सुनने को तरसते है।

पेड़ों के पत्तों में फलों को ढूंढना,

चुपके से छत पर जाकर ,

खट्टे मीठी आमों की चोरी करने को जी चाहता है।

माँ के हाथ की रोटी ,

पड़ोसिन चाची के हाथ की कटोरी में

पंसद की सब्जी खाने को जी चाहता है।

रिश्ते दिल से निभाये जाते थे।

पडोसी भी मामा,

चाचा कह कर बुलाते जाते थे।

रिश्तों पर पड़ी धूल हटाने को जी चाहता है।

खोयी हुई यादों , बिछड़े रिश्तों को

गले लगाने को जी चाहता था।

पीहर मे छूटे जो रिश्ते उन्हें मिलकर

गले लगाने को जी चाहता है।

भाभी, चाची, दीदी, अम्मा लगती प्यारी थी।

उनके हाथों से बनी मिठाई खाने को जी चाहता है।

 

©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा                         

Back to top button