लेखक की कलम से

अनुसूचित जाति में सबसे अधिक दयनीय दशा वाल्मीकि समुदाय की है: शर्मिष्ठा सोलंकी

प्रसून लतांत । अपने देश में आजादी के 75 सालों के बाद भी दलितों में सबसे ज्यादा दयनीय दशा वाल्मीकि समुदाय के स्त्री, पुरुष और बच्चों और बुजुर्गों की है। वे सामाजिक,आर्थिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से घोर उपेक्षा के शिकार हैं। इस समुदाय की कई पीढ़ियां आजीविका के लिए पारम्परिक कार्य सफाई ही करने को अभिशप्त हैं। आजीविका के लिए उनके लिए कोई भी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। यह कहना है गुजरात की युवा समाज कर्मी शर्मिष्ठा सोलंकी का।

एक सफाई कर्मी के परिवार में जन्मी और समाज में सफाई कर्मचारियों की स्थिति पर पी एच डी कर रहीं शर्मिष्ठा कहती हैं कि अपने समाज में चार वर्ण हैं,जिनमें ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र हैं, इनमें शूद्र को छोड़ कर सभी वर्णों के लोग अपने पारंपरिक पेशे से मुक्त हो गए हैं, लेकिन शूद्रों में खास कर वाल्मीकि समुदाय के लोग अपने पारंपरिक कार्य मतलब सफाई कार्य से कभी खुद को मुक्त नहीं कर पाए हैं। उनकी पीढ़ियां गली, मोहल्ला और शौचालय साफ करते हुए खप गईं।

वे अगर किसी तरह किसी दूसरे पेशे को अपना भी लेते हैं तो जैसे ही लोग जान जाते हैं कि वे वाल्मीकि समुदाय के हैं तो इसके बाद उनका बहिष्कार होने लगता है। शर्मिष्ठा सवाल उठाती हैं कि जब सभी समुदायों में परिवर्तन हो रहा है तो उसकी लहर से उनका समुदाय ही क्यों अछूता रह गया है।

उनका कहना है कि इस समुदाय के लोगों की आजीविका में बदलाव नहीं आने से  वे विकास का कोई लाभ नहीं उठा पाते। वे आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं, गंदगी की सफाई करते करते वे बीमार भी होते रहते हैं। क्योंकि वे व्यसन भी करते हैं। दारू और बीड़ी की आदतें भी इसलिए घर कर जाती हैं क्योंकि वे नशे की हालत में ही सफाई करने को अभ्यस्त हो जाते।

 

 

©प्रसून लतांत

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