लेखक की कलम से

बछड़े की व्यथा ….

तड़प तड़प के मरता बछड़ा धरती मां से बोला हे ! मां ये असहनीय पीड़ा अब सही नहीं जाती, तू क्यों ? नहीं मेरे लिए भी गऊ दान करवाती। देखकर बछड़े की पीड़ा को धरती मां बोली मेरे पुत्र मेरे बस में होता तो मैं तुझे अभी नया जीवन दान दे देती पर यह मेरे भी बस में नहीं है।मैं केवल तेरा कुछ कष्ट कम करने की कोशिश कर सकती हूं। वो कैसे मां बछड़ा बोला।धरती मां ने सोचा की अगर बछड़ा अपनी पीड़ा के बारे में सोचेगा तो इसे ओर पीड़ा होगी। इसलिए इससे थोड़ा बहुत बतियाती हूं जिससे इसका ध्यान उस और ना जाए।

धरती मां बोली मेरे पुत्र बछड़े मैंने पहले तुम्हें यहां कभी नहीं देखा तुम मूल रूप से कहां के हो मुझे अपने बारे में कुछ विस्तार से बताओ। यह सुनकर एक बार तो बछड़े को धरती माता पर क्रोध आया। उसने मन ही मन वाक्य दोहराया ‘जाके पैर ना फटे बिबाई वो क्या जानें पीर पराई ‘ धरती माता ने बछड़े के मन की बात सुन ली थी। धरती मां बोली पुत्र ये लो थोड़ा सा जल पी लो आराम आ जाएगा। बछड़ा जल पीकर अपनी पीड़ा को कम करते हुए अपने जीवन काल की चिर स्मृतियों में क्षणभर के लिए गोते खाने लगा ।  एक काल खंड की भांति उसके स्मृति पटल पर चलचित्र जीवित हो उठे।

वह कराहती आवाज में धरती माता से बोला मां मेरा जन्म उस सुंदर, सुकोमल, सुडौल गाय के गर्भ से हुआ है जिसे यह कहकर उसके मालिक ने साहूकार को बेच दिया था की अब गांव में क्या रखा है। मेरा बेटा अब विदेश में बस गया है कुछ दिन बाद मुझे भी साथ ले जाएगा। तो मैं अपनी सारी गायों को बेचकर अपने लिए आवश्यक दस्तावेज बनवा लेता हुं। साहुकार के यहां पहले से ही अनेक गाय थी। वो एक गौशाला की देखभाल करता था तो उसने मेरी मां सहित अन्य गायों को भी खरीद लिया। उसी रात मैं मेरी मां के गर्भ से धरती पर आ गया।

चुकी मेरी मां पहली बार मां बनीं थी तो सबने उसकी खूब सेवा की थी जो भी गौशाला में दुध लेने आता मुझे दुलारता एक बार दूध लेने आने वाली अम्मा अपने पोते को साथ ले आई। पोता मुझे देखकर बड़ा खुश हुआ ओर वह प्रतिदिन खेलने के लिए मेरे पास आने लगा एक दिन उसने मेरे पैर में एक घुंघुरू वाली डोरी बांध दी। अब तो अन्य गायों के बछड़ों व बछडियो के साथ उछल कूद करता व खेलता। चुकी मेरी मां सभी गायों में सबसे ज्यादा दूध देती थी तो वह साहूकार की चहीती बन गई थी।

साहुकार के दो बेटे थे दोनो ही परदेश चले गए थे। साहुकार और उसकी पत्नी ज्यादा वृद्ध नही थे।उन्हें गायों की सेवा पुण्य का काम लगता था। साहुकार के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी। सभी गायों की देखभाल करने के लिए कामगार रखे हुए थे। सभी बछड़ों व बछडियो को अपनी मां से खूब दूध पीने को मिलता था।

बछडियो को तो बड़ी होने पर रख लिया जाता था तथा बछड़ों को दूसरी जगह बेच दिया जाता था। अभी मैं बहुत छोटा था ओर सभी का लाड़ला भी। साहुकार भी जब भी अपनी पत्नी के साथ गौशाला में आता तो मुझे लाड़ प्यार जरूर करता था। फिर एक साल ऐसी बीमारी आई थी विदेश में रहने वाले साहूकार के दोनों बेटे परिवार सहित ही परलोक गमन कर गए। इस असहनीय पीड़ा को साहुकार की पत्नी सह नहीं पाई ओर वो भी चल बसी।

उस बीमारी की वजह से एक दो कामगार भी मृत्यु लोक को गमन कर गए।अब गायों की सेवा साहुकार व बचे हुए कामगार करने लगे। धीरे धीरे साहुकार भी दुबला होता गया ।एक दिन उसने विचार किया की अब में इन गायों की सेवा नहीं कर पाऊंगा तो उसने अपने भतीजे को अपना दत्तक पुत्र बनाकर रख लिया । साहुकार का भतीजा पाप पुण्य में कम विश्वास रखता था । उसका बस एक ही काम था की ज्यादा से ज्यादा धन कैसे इकट्ठा किया जाएं। ऐसे ही दिन निकलते गए फिर एक दिन साहुकार भी चल बसे।

अब साहुकार के जाने के बाद गौशाला की गायों के उल्टे दिन आ गए।साहुकार का भतीजा अब गायों के सुई लगाने लग गया जिससे वो ज्यादा से ज्यादा दूध दे सकें। अब गायों को ना तो हरा चारा मिलता ना ही समय पर उनकी देखभाल हो पाती। फिर एक दिन साहुकार का भतीजा अपने पुराने मित्र को गोशाला दिखाने लाया ओर कहने लगा की गाये दूध बहुत कम देती है ओर कामगारों को मेंहनताना देने के बाद हाथ में कुछ नहीं बचता। तो उसके दोस्त ने उससे कहा की तू ऐसा कर इन्हें बेच दे और जवान और ज्यादा दूध देने वाली गाय खरीद ला। में एक ऐसे आदमी को जानता हूं जो ये काम करता है। अच्छा ठीक है दो दिन बाद गाड़ी लेकर आता हुं फिर चलते है।

दो दिन बाद साहुकार के भतीजे का दोस्त बड़ी सी पिंजरेनुमा गाड़ी लेकर आया ओर हमें उसमें लेकर जाने लगा। मैने उससे पहले गांव का नजारा नहीं देखा था। सभी गाये बहुत खुश थी नए नए नजारों, पहाड़ों व झरनों को देखकर। शायद ही इससे पहले गौशाला की गाय कहीं बाहर गई हों। ठंडी ठंडी हवा के साथ वातावरण में एक अजीब से शांति थी। तभी सामने से सड़क के बीचों बीच एक बड़ा सा गड्ढा आ गया। जो शायद कल की बरसात के कारण प्रशासन की पोल खोल रहा था। ओर सभी यकायक धड़ाम से गिर पड़े।

में बेहोश हो गया था जब होश संभाला तो पता चला कि साहुकार का भतीजा व उसका मित्र यमलोक प्रस्थान कर गए ओर बहुत सी गायों के साथ मेरी मां चिर निंद्रा में सो चुकी थीं। मैं और एक दो गाये ही जिंदा बचे थे। में भी उनके साथ इधर उधर घूमता इन पहाड़ों की तलहटी में चरता रहता ऐसे करते कुछ महीने निकल गया। तभी मेरे साथ वाली गायों को ना जाने क्या हुआ की तालाब में पानी पीते पीते ही मर गई और में भी यहां तक आ गया। मुझे भी ना जाने कौनसी बीमारी ने चपेट में ले लिया है।

पर हे धरती मां मैं ऐसे नहीं मरना चाहता की चील कौए मुझे नोच नोच कर खाएं। धरती मां बोली पुत्र तुम जहां लेटे हों वहां की जमीन बहुत पोली है तुम ऐसा करो अपने खुर से एक दो बार वहीं प्रहार करों। वहा एक गड्ढा हों जाएगा। वैसे भी कुछ समय पश्चात मूसलाधार बरसात होने वाली है। तुम्हारे पीछे जो मिट्टी का पहाड़ है वो भी ढहने वाला है। लो पुत्र थोड़ा ओर जल पी लो ओर अपनी पीड़ा को सहते हुए चीर निंद्रा में सो जाओ। बछड़े ने एक दो बार धरती पर पैर पटके ओर एक गड्ढा हों गया। अब बछड़ा गड्डे में था तभी वर्षा की बूंदे बछड़े के ऊपर गिरने लगी उससे उसे थोड़ी राहत मिली ओर लगा कि प्रकृति उसे लोरी सुना रहीं है जैसे उसकी मां सुनाया करती थीं।

तभी बछड़े ने अपने प्राण त्याग दिए। आसमान में बिजली कड़की और मूसलाधार बरसात होने लगी। मिट्टी का पहाड़ एकाएक ढए गया व बछड़ा उसमे दब गया। वर्षा मूसलाधार थी जो गौधूली बेला तक बरसती रही । फिर सुबह बादलों की ओट से सूर्य की चमचमाती किरणें धरती पर गिरने लगी। पेड़ो पर लगे फूल और पत्ते बछड़े के ऊपर ऐसे गिरे जैसे शोक संवेदना व्यक्त कर रहें हो एवं पत्तों पर जमा पानी ऐसे टपक रहा था जैसे आंसू बहा रहा हों।

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                

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