लेखक की कलम से
सबकी ” बसन्त ” कर दे
कविता
भंवरा देखो फूल कली पर मंडरा रहा है
पतझड़ भी कैसे उदास मन लगे ऐ सखी
हर कोपल पर नया वाशिंदा जो आ रहा है
बसंत लाना है तो पतझड़ तो जीना ही होगा
मीरा बनना है तो विष भी तो पीना ही होगा
जिन्दगी को तु सबकी ” बसन्त ” कर दे
दुखों का सब के बस ” अन्त ” कर दे . . . .
–अनुपम अहलावत
सेक्टर 48, नोयडा