लेखक की कलम से
पाषाण प्रतिमा-सी …
पाषाण प्रतिमा-सी,
बैठी खामोश सी,
शिल्पकार के हथौड़े की मार से,
छेनी के प्रहार से,
शिल्पी ने मुझको घड़ दिया,
एक ओर धर दिया।
पाषाण प्रतिमा-सी,
बैठी खामोश सी।।
कोई मुझको आस दे,
कोई मुझको प्यास दे,
मेरे लरजते होठों पर,
अमृत-कलश उडेल दे।
पाषाण प्रतिमा-सी,
बैठी खामोश सी।।
दिल के तार छेड़ दे,
मुझमें प्राण फूंक दे,
पत्थर के होठों को,
कोई नया गीत दे,
तन में संचार हो,
हृदय में झंकार हो।
पाषाण प्रतिमा-सी,
बैठी खामोश सी।।
©लक्ष्मी कल्याण डमाना, नई दिल्ली