लेखक की कलम से

मैं मिलूंगी ज़रूर …

 

मिलने और….

बिछड़ने के अन्तराल को

ऐसे रखना कि

कभी बाद

बहुत बाद भी

कहीं, राह चलते मिल जाऊं तो

मुझसे मेरा हाथ पकड़ कर

पूछ सको मेरा हाल

मुस्कुरा सको मुझे देख कर

जैसे पहचाने हुए राही से

फिर मुलाक़ात हो जाती है

किसी दूसरे राह पर

 

मैं मिलूंगी ज़रूर……

 

वैसे ही,

जैसे पहले कभी मिली थी …..!!!!

 

©नीलम यादव, शिक्षिका, लखनऊ उत्तर प्रदेश         

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