हम भुइंया के भगवान हरन …
कतेक सुग्घर लहरावत हे,
देखव तो धान के बाली।
मोर खेत- खार म फैले हे,
बड़ गज्ज्ब के हरियाली।।
धान के एकेक दाना ह,
देख सोन जइसन चमकत हे।
मेहनत के फल ल देख,
किसान के चेहरा दमकत हे।।
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जग के भूख मिटाए खातिर,
करम के बिजहा बोए हे।
येकरे परसादी तो वोहा,
कतको सपना ल संजोए हे।।
बेटी के बिहाव रचाना,
अउ छोटे भाई ल पढ़ाना हे।
टूटहा-फुटहा घर कुरिया ल,
घलक बने बनाना हे।।
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खातू- कचरा के पैसा ल,
कइसे करके पटाबोन।
आधा थोरहा ल दे के भाई,
सेठ जी ल मनाबोन।।
थोक बहुत करजा छुटबो,
जरूरी चीज बिसाबोन।
दु चार पैसा बाँचगे त,
बाकी के गृहस्थी चलाबोन।।
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अब आहि,तब आहि कहिके,
मेंहा पढेंव रमायण गीता।
एक हाथ म आइस अउ,
दूसर हाथ ले होगे रीता।।
किसान के दुख ल का बतावंव,
जिंनगी भर लाचारी।
पेट ह कभु भरे नहीं अउ,
उना रहिथे मोर भात के थारी।।
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राजनीति अउ प्रकृति,
हम दुनों के मार ल सहिथन।
हम भुइंया के भगवान हरन,
देख कलेचुप रहिथन।।
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)