लेखक की कलम से
सखी ने छीन लियो बाँसुरिया …
होरी खेलन आये श्याम, सखी ने छीन लियो बाँसुरिया
काहे आयो रे ब्रजधाम, सखी ने छीन लियो बाँसुरिया
रंग गुलाल की झोली ले गई, खाली पोटली हाथ में दे गई ,
पिचकारी से रंग उड़ाके, भाग गई सब रंग लगाके ,
कर रार आज सरेआम, सखी ने छीन लियो बाँसुरिया
बृज की गली में कान्हा खो गए, नैन चार राधा से हो गए
कान्हा के मन राधा में अटके ,भटक रहे पीछे पनघट पे ,
सारे भूले बिसरे काम ,सखी ने छीन लियो बाँसुरिया
आज बिरज का भाग जगेगा, आज गगन से रंग बरसेगा ,
सारे रंग अब छूटेंगे तन से, श्याम रंग मन आज रंगेगा ,
आये रंगने खुद घनश्याम, सखी ने छीन लियो बाँसुरिया ॥
©प्रीति सुमन, मुंबई