लेखक की कलम से

ताजमहल ….

 

प्यार की है निशानी कि मोहब्बत की कबर है ये ,

दफन है माशूका इसमें किसीको क्या खबर है ये ?

 

बहुत है खूबसूरत यह मकां एक सँगेमरमर का

मगर जो है गड़ी इसपर कहो किसकी नजर है ये ?

 

जो सोई इस इमारत में सुनाती हाल गर अपना

सुनाती दास्तां तुमको कि कैसी रहगुजर है ये !

 

बसी थी जर्रे-जर्रे में इश्क की दास्तां जिसके

लगे फिर किस तरह देखो के मुर्दों का शहर है ये !

 

 

©अमृता शर्मा, बोकारो, झारखण्ड           

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