लेखक की कलम से
थाम लिया करो …
बिन बोले जो समझे अपना वही है
जो अपनापन जताये वह अपना नहीं है
मिठास गर हो रिश्तों में
जीना मुश्किल नहीं है
दिल समझ कर दिल में रहो
अंजान बनना सही नहीं
इससे मुनासिब है
पत्थर बन के रहो
न सुनो किसी की
न कहो किसी से
यह है सपनों की दुनिया
यहाँ इमारते हैं ख्यालों की
हकीकत में दर्द देते है••••
स्वार्थ के रिश्ते। ।
दोस्ती दिल से जिया करो।
भीड़ में मुस्कुराहटों की
जो पहचान ले मुस्काते लबों पर
छलकती नमी•••••
मीठा सा पल वही
दोस्तों से जिंदगी साँसे लेती है।
यूँ ही न जिंदगी से खफा रहा करो
चंद लम्हात मेरे साथ जिया करो।
भूल कर गम सारे हाथों में हाथ
थाम लिया करो।
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा