हिन्दी और माँ …
(01)
माँ ने हमको दिया जनम,
बनी सहारा बचपन का
लड़खड़ाती पग को देखे,
दिया सहारा लाल को |
ऐसी हमने बचपन देखी,
देखी माँ के होंठ को,
होंठो की बोली को देखा,
बोली तुतले जुबान को,
ऐसी माँ और माँ है माता,
माँ की बोली और हिंदी में ||””
(02)
””ऐसी होंठ हमने पाया,
माँ की ये वरदान से,
बोली से भाषा का मिश्रण,
पाई माँ की जुबान से |
हिन्दी की समाहित देखो,
वर्णों की ये तान से,
बनी रचना शब्द की जो,
बोली बनी जुबान से |
ऐसी माँ और माँ है माता,
माँ की बोली और हिंदी में ||””
(03)
देखो शान ये जीवन की,
यही बनी पहचान मेरी |
नित नए वर्णों की मेल,
ऐसे अक्षर धाम की,
हिन्दी ऐसी भाषा मेरी,
देश की पहचान की |
हिन्दी से ही उपजे ये जन,
कबीर मीरा तुलसी की कंठ
ऐसी माँ और माँ है माता,
माँ की बोली और हिन्दी में||””
(04)
“”हिन्दी की शान ये देखो,
अंग्रेजों की चाल ये देखो
शोषण भयंकर मार की,
देख ममता माँ की जागी |””
जन्म निराला दिनकर शंकर,
रामधारी शुभद्रा चौहान सी |
ऐसी रचना लाल ये गढ़े,
माता के सम्मान की,
ऐसी माँ और माँ है माता,
माँ की बोली और हिन्दी में ||””
(05)
“”वीरो सा ये मैथली जागा,
देके रचना जबान की |
हिन्दी माँ की लाज बचाने,
अंग्रेजो के छक्के छुड़ाने |
कर्म रचना ऐसी कर डाले,
सन्देशा जेलो से भेजे |
माखन की देशभक्ति ऐसी,
अभिलाषा पुष्प वरदान की |
ऐसी माँ और माँ है माता,
माँ की बोली और हिन्दी में ||””
(06)
“”माँ के पीड़ा को सह न पाया,
परीक्षा कफन गबन गोदान की,
ग्राम्य जीवन की रचना शैली,
सहज समरसता परछाई सी,
अंग्रेजों से लोहा लेने,
मुंशी हिन्दी सम्राट की,
ऐसी माँ और माँ है माता,
माँ की बोलीऔर हिन्दी में ||”
(07)
“”ऐसी माँ की यात्रा निकली,
चल पड़ी तूफान में,
उठो लाल मेरे अब जागो ,
पहचनो माँ के प्यार को |
शत्रुओ को मार भगाने ,
देखो कलम की लेख निराले |
भाग गए अब लेख की डर से,
हिन्दी , हिन्दी , हिदुस्तान से |
ऐसी माँ और माँ है माता ,
माँ की बोली और हिन्दी में||”
(08)
“”हमे एकता की पाठ पढ़ाने,
समरसता की दवा पिलाने |
मोती को माला में पिरोने,
अनेकता से एकता में |
राष्ट्रशक्ति को पहचान दिलाने,
विश्वभ्रमन कर शान बनाने |
टेक्नोलॉजी ने पहचाना,
गूगल में स्थान बनाया |
ऐसी माँ और माँ है माता,
माँ की बोली और हिन्दी ||
©योगेश ध्रुव, धमतरी, छत्तीसगढ़