लेखक की कलम से

दलाई लामा पूज्य हैं, माना मोदी ने …

मोदी सरकार अब कुछ बदली है। बल्कि तीन वर्षों बाद सुधरी है। हालांकि हर परिवर्तन को प्रगति नहीं कहते। भले ही प्रत्येक प्रगति परिवर्तन कहलाती हो। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ट्वीट किया। विश्ववंद्य, भगवान अवलोकितश्वर के अवतार, परम पावन दलाई लामा को उनके 86वीं वर्षगांठ (सात जुलाई) पर शतायु होने की कामना भेजी। निर्वासित तिब्बत सरकार के सिक्योंग (अध्यक्ष) लोबांग संगये ने बताया कि यह पहला अवसर है जब मोदी ने स्वयं दलाई लामा को ऐसा संदेशा प्रेषित किया।

अत: कूटनीति तथा मानवता के दरम्यान सुघड़ तालमेल समायोजित हुआ है। साथ ही विस्तारवादी लाल चीन को संदेशा भी मिल गया। सप्ताह भर की घटनाओं के परिवेश में यह गमनीय है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सदी पर मोदीजी ने एक शब्द भी न कहा, न लिखा। एकदम नजरंदाज कर दिया। कैसे लालसेना की लद्दाख में की गयी हिंसा बिसरायी जा सकती थी ? प्रधानमंत्री की ऐसी युक्ति बड़ी सूचक है। बोधक भी। इस बुद्धावतार लामा का मैं उपासक हूं। मेरे प्रेरक राममनोहर लोहिया उनके अथक समर्थक रहे। मेरे साथी जार्ज फर्नांडिस परम पावन के क्रियाशील योद्धा रहे। अपने सरकारी आवास (3 कृष्ण मेनन मार्ग) में ही स्वाधीनता प्रहरी तिब्बती नागरिकों का मुख्यालय जार्ज ने स्थापित कराया था। तब अटल काबीना में जार्ज प्रतिरक्षा मंत्री थे। मेरी पीढ़ी और अब अगली भी सपना संजोती हैं कि तिब्बत में कैलाश मानसरोवर मुक्त होगा। अफसोसजनक लगा कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार से अनुमति लेकर राहुल गांधी कैलाश गये थे। उनकी भांति हम याचक बनकर भोलेनाथ के दर्शन करने नहीं जाना चाहते।

लेकिन अब मोदी सरकार पर निजी आक्रोश भी व्यक्त कर दूं। यह 18 अप्रैल 2018 का अवसर था। परमपावन दलाई लामा द्वारा चीनी शिकंजे से बच कर तवांग (अरुणाचल प्रदेश) में प्रवेश करने के सांठवीं सालगिरह थी। दिल्ली में स्वाधीनता प्रेमियों ने तिब्बती शरणार्थियों के साथ जलसा रखा। आयोजन की तैयारी दो माह से हो रही थी। मोदी के विदेश सचिव विजय गोखले को एक पत्र आया। काबीना सचिव, यूपीवासी प्रदीप कुमार सिन्हा ने (22 फरवरी 2018) भेजा था। समस्त सरकारी अधिकारियों तथा संस्थाओं को हिदायत थी कि दलाई लामा के इस समारोह से दूर ही रहें।

मोदी सरकार ने परम पावन धर्मगुरु दलाई लामा (Dalai Lama) के भारत में प्रवेश की साठवीं वर्ष गांठ पर प्रस्तावित समारोह को ही निरस्त करा दिया था।  माओ ज़ेडोंग के विस्तारवादी चीन के शिकार, कम्युनिस्ट बर्बरता से संत्रस्त दलाई लामा को भारत में शरण पचास के दशक में मिली थी। हिंदी-चीनी भाई—भाई वाले सूत्र के रचियता जवाहरलाल नेहरु ने ही ऐसा दुस्साहस कर दिखाया था। ढाई साल बाद (1962) चीन ने इसका बदला लिया, भारत पर हमला कर दिया। मगर अपने रामभक्त मोदी मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भूल गये। तुलसीदास ने लिखा था “सरनागत कहूँ जे तजहिं, निज अनहित अनुमानी”, ऐसे लोग पापमय होते है और उन्हें देख कर भी पाप लगता है। राजा हमीर ने सुल्तान अल्लाउदीन खिलजी के भगोड़े भतीजे को शरण दी थी। प्रतिशोध में खिलजी ने रणथम्बोर को मटियामेट कर दिया। हिंदूवादी नरेन्द्र मोदी को ये दोनों प्रसंग याद रखना चाहिये था।

 

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©के. विक्रम राव, नई दिल्ली              

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