कोरोना-रक्तबीज …
एक अन्जाना सा डर
समाया है हर उर
क्या मानव जाति खत्म हो जाएगी?
या फ़िर किसी दैवी शक्ति का होगा अवतार
जो सभी संशय, भय और क्षोभ का
कर सकेगी संहार
रक्त की हर बूंद जो बन गई थी असुर
ऐसे असुर जिनके लिए नहीं था
कोई भी बंधन, अंकुश या तारनहार
कोरोना, बन आज का रक्तबीज
कर रहा मानव जाति का विनाश
विलुप्ति के कगार पे है आज जीवन
मुंह बाए खड़ा है आज
साक्षात सर्वनाश
लेकिन
इतनी निराशा और भय का
है एक ही निदान
वो ही दैवी शक्ति
जो है सर्व शक्तिमान
जिसने बन काली और चंडिका
किया था विषैले रुधिर का पान
संकटों का किया संहार
देवों सहित समूची पृथ्वी को
दिया था प्राण दान।
आज भी इस संकट की घड़ी में
हम सभी को बनना है चामुंडा
अपने संयम, धैर्य और अनुशासन से
वापस लाना है वही जीवन
जिसमें चहुं ओर हो प्रेम, विश्वास
जीने की एक ललक भरी आस
हां
हम कर सकते हैं ये दुष्कर काम
होंगे हम नहीं हताश
बढ़ाएंगे सहायक हाथ
और जीवन को देंगे एक नया नाम
आशा- जीने की
आशा-सहारे की
सवेरा-खुशियों का
सहारा -अपनों का
इन सभी संबलों के साथ
उदय होगा एक नया सवेरा
जब चारों दिशाओं में होगी
एक नई उम्मीद की मुस्कान
नई सदी, नई पीढ़ी के नाम।।
©अलका शर्मा