प्रतीकात्मक …
क्या मान गया है मानव कि
तुम्हारा
भविष्य में हर भाव होगा प्रतीकात्मक
मानव प्रतीक
आदमी या औरत के जलते दफन होते शरीर
ना कोई पंडित हैं ना कोई मौलवी
और ना ही कोई खाना खिलाने की रस्म
बस आँखों से छलके दो आँसू है
किसी का अपना होने भर का प्रतीक ।
लूट खसोट मचा दी है कुछ हैवानों ने
कहने को है मानव के प्रतीक
साँसें ख़रीदने पर है मजबूर उन्हीं से
जो लायक़ नहीं हैं कहलाने मानव का प्रतीक
प्रश्न आते हैं मन में मेरे……
क्या हम नहीं बना सकते मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूदारे केवल
प्रतीकात्मक
मानव विकास के लिए खड़ी करें ऐसी इमारतें
जहां मिलें मानव को ज्ञान, स्वास्थ्य और इन्सानियत की शिक्षा
सच कहती हूँ
देखा है मैंने असली इंद्रधनुष के रंगों को
कल्पना मात्र से सिहर उठती हूँ देख कर काले गाढ़े भूरे रंग के इंद्रधनुष में
हल्के रंगों की लकीरों को
नहीं नहीं
इस इंद्रधनुष को बचाना है, “नहीं बनने देना है इसे प्रतीकात्मक”
जाग मानव जाग इन्सान ही बना रह, कहीं इन्सानियत ही
ना रह जाए प्रतीकात्मक
बचा ले इस युग को वरना कहीं हड़प्पा संस्कृति की तरह यह युग ना रह जाए प्रतीकात्मक
और एक छोटा सा सच यह है कि
काले इंद्रधनुष में है कुछ महीन रंगों की धारियाँ
उन इन्सानों की है जो अब भी है मानवता के प्रतीक ।
©सावित्री चौधरी, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश
परिचय: पेशे से अध्यापिका, संगीत पर रुचि, देश-विदेश में स्कूली कार्यक्रमों का आयोजन, भारत सरकार द्वारा सम्मानित, कविता, लोकगीत, लेखन का कार्य।