धर्म

डभोई का त्रिवेणी संगम जहां लोगों के ऋण उतारने विराजमान हैं मुक्तेश्वर महादेव …

नर्मदा परिक्रमा भाग -17

अक्षय नामदेव। नारेश्वर से तिलकवाड़ा के रास्ते चलते चलते हम मां नर्मदा एवं औरसंग नदी तथा गुप्त सरस्वती के त्रिवेणी संगम में पहुंचे। इसे दक्षिण प्रयाग  तीर्थ भी कहा जाता है। गुजरात राज्य के बड़ोदरा जिले डभोई तहसील में स्थित इस त्रिवेणी संगम में 26 मार्च 2021 शुक्रवार तिथि द्वादशी को दोपहर के एक बजे खड़ी चिलचिलाती धूप में भी तट पर सैकड़ों लोगों की भीड़ थी। मुख्य मार्ग से त्रिवेणी संगम पहुंचने तक के ढलान वाले रास्ते के दोनों ओर चाय नाश्ते, गन्ने के रस एवं पूजन सामग्री की दुकानें सजी हुई थी। इस  त्रिवेणी संगम को ऋण मुक्तेश्वर तीर्थ भी कहा जाता है। संगम के तट पर 500 मीटर की दूरी पर ऊंची पहाड़ी में ऋण मुक्तेश्वर महादेव स्थित है। आसपास अनेक पुराने मंदिरों के समूह है तथा वेद पाठी ब्राह्मण अपने अपने यजमानों के हितार्थ कर्मकांड करा रहे थे। परिक्रमा वासी एवं साधु सन्यासी यहां बड़ी संख्या में हमें दिखे।

हमने ऋण मुक्तेश्वर त्रिवेणी संगम में मां नर्मदा का पूजन अर्चन किया तथा वहां से ऋण मुक्तेश्वर महादेव का दर्शन करने पहाड़ी पर गए। शास्त्रों में विधान है कि इस तीर्थ में भक्ति भाव से स्नान दर्शन पूजन तर्पण से सभी ऋणों से मुक्त हो जाता है।

यहां त्रिवेणी संगम में मां नर्मदा का बड़ा चौड़ा पाट है तथा भरी दोपहरी में भी लोग नौकायन कर रहे थे। हम परिक्रमा में हैं हमें सिर्फ मां नर्मदा के स्नान एवं दर्शन का ही अधिकार है नौकायन का नहीं। ऋण मोचन तीर्थ त्रिवेणी संगम का दर्शन पूजन करने के बाद हम आगे बढ़ चले और दो किलोमीटर पर ही हमने मारकंडेश्वर तीर्थ का दर्शन किया। यहां नर्मदा तट पर ऋषि मार्कंडेय ने तपस्या की थी इसलिए इस घाट का नाम मारकंडेश्वर घाट है। कुछ दूर पर ही नर्मदा तट पर पिंगलेश्वर तीर्थ है। यहां उपस्थित पुजारी ने हमें बताया कि कुष्ठ रोग से पीड़ित होने के कारण अग्नि देव ने यहां घोर तपस्या की जिस पर भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया। अग्नि के नर्मदा स्नान के बाद व रोग रहित हो गया तथा वहां पर अग्निदेव ने पिंगलेश्वर महादेव की स्थापना की। तब से इस तीर्थ का नाम पिंगलेश्वर तीर्थ रखा गया।

इसी त्रिवेणी संगम के पास ही रावण के भाई कुबेर ने तपस्या की थी तथा भगवान भोलेनाथ की स्थापना की। इसके कारण यह कुबेर तीर्थ कहलाया। नर्मदा तट पर स्थित कुबेरेश्वर महादेव मंदिर अत्यंत प्राचीन एवं सुंदर है। यहां एकत्रित धन संपदा के कारण यहां पुलिस की भी काफी सुरक्षा है। यहां अन्न क्षेत्र भी संचालित है परंतु कोरोनावायरस संक्रमण से उत्पन्न लॉकडाउन के कारण अन्नक्षेत्र  बंद रखा गया था।

यही त्रिवेणी संगम के तट पर कंताली गांव में अंगराज कर्ण का अंतिम संस्कार किया गया इसलिए ऐतिहासिक एवं पौराणिक सभी दृष्टि  से इस त्रिवेणी संगम का महत्व है। इसे दक्षिण  प्रयाग भी कहा जाता है यहां अंतिम संस्कार, अस्थि विसर्जन, पित्र पूजन दिनभर होते हैं जिसके कारण यहां वर्ष भर भीड़ रहती है। त्रिवेणी संगम के तट पर कैथा के फलों की भरमार है तथा ग्रामीण स्त्री पुरुष इसे विशेष तरीके से नमक मिर्ची मिलाकर बेचते हैं जिसे खाने का हमने वहां आनंद लिया। मां नर्मदा एवं औरसंग नदी तथा गुप्त सरस्वती के त्रिवेणी संगम तीर्थ का दर्शन पूजन कर हम आगे बढ़ गए।

क्रमशः

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