धर्म

यात्रा वृतांत: रायबरेली में आयोजित काव्यांजलि में हम उसको भूल गए हैं ने हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता के गुम होने पर ध्यान आकृष्ट करा कर खूब वाहवाही बटोरी तो वहीं “सरसों लहराया पगडंडी वाले खेत में, धरती आई चेत में” की प्रस्तुति से फिरोज गांधी सभागार का माहौल ही बदल गया ….

अक्षय नामदेव। 11 नवंबर को शाम 5 बजते बजते हम रायबरेली पहुंच गए थे। हमें हमारे कार्यक्रम के संयोजक गौरव अवस्थी ने 1 घंटे का विश्राम अवकाश देते हुए कहा था कि ठीक शाम 6 बजे होटल के सामने बस तैयार रहेगी आप सभी को बैठ कर फिरोज गांधी सभागार रायबरेली में पहुंचना है जहां काव्यांजलि का आयोजन किया गया है। होटल में कुछ देर विश्राम करने के बाद हम होटल से बाहर आ गए और बस में बैठकर फिरोज गांधी सभागार पहुंच गए। रायबरेली शहर के बीच स्थित फिरोज गांधी सभागार अत्यंत सुंदर सुसज्जित सर्व सुविधा युक्त सभागार है। आकर्षक साज-सज्जा और लाइटिंग से बाहर से ही सभागार की शोभा देखते बन रही थी। हम जब सभागार के अंदर प्रवेश किए तो बड़ी संख्या में नगर के गणमान्य नागरिक एवं जनप्रतिनिधि सभागार में विराजमान हो चुके थे। इतनी भीड़ होने के बावजूद भी आयोजकों एवं नगर के आगंतुकों ने इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि इस कार्यक्रम में बाहर से आए अतिथियों को बैठने के लिए बगलें ना झांकना पड़े। आयोजन समिति के कार्यकर्ता प्रवेश द्वार पर ही आगंतुकों को स्वागत कर उन्हें उनकी यथोचित कुर्सी तक पहुंचा रहे थे ताकि किसी तरह की किसी को भी असुविधा ना हो। काव्यांजलि प्रारंभ होने के पूर्व हम अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे। कार्यक्रम का प्रारंभिक संचालन आंचल अवस्थी कर रही थी तथा काव्यांजलि शुरू होने के साथ ही उन्होंने काव्यांजलि के संचालन का दायित्व प्रख्यात कवित्री सरिता शर्मा को सौंप दिया जिनकी ताजा तरीन मीठी आवाज से फिरोज गांधी सभागार का माहौल ही बदल गया।

आचार्य स्मृति दिवस के रजत जयंती समारोह आयोजित इस काव्यांजलि सत्र की अध्यक्षता पद्मश्री हलधार नाग ने की। उड़िया भाषा के कवि पद्मश्री हलधर नाग के बारे में जितना कुछ कहा जाए कम है। सादा जीवन उच्च विचार से लबरेज हलधर नाग को 40 से अधिक महाकाव्य तथा अनगिनत रचनाएं कंठस्थ है इतनी ऊंचाइयों पर जाने के बाद भी वह सहज सरल ठेठ ग्रामीण अंदाज में मंच पर विराजमान थे। काव्यांजलि की शुरुआत नीलम श्रीवास्तव के द्वारा सरस्वती वंदना से की गई। काव्यांजलि सत्र में कानपुर से हास्य कवि हेमंत पांडे, फरीदाबाद से दिनेश रघुवंशी भोपाल से डॉ. अनु सपन, मध्य प्रदेश रेनू श्रीवास्तव, नीलम श्रीवास्तव, चित्तौड़गढ़ से शुभदा पांडे ने काव्य पाठ किया। मंच की संचालक सरिता शर्मा ने प्रारंभ में नए कवियों को मौका देकर उनका उत्साह बढ़ाया। नए कवियों की रचनाएं उत्कृष्ट और सधी हुई थी। रेनू श्रीवास्तव की कविता हम उसको भूल गए हैं ने हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता के गुम होने पर ध्यान आकृष्ट करा कर खूब वाहवाही बटोरी। चित्तौड़गढ़ राजस्थान डॉ शुबदा पांडे की प्रकृति और श्रृंगार से ओतप्रोत रचना “सरसों लहराया पगडंडी वाले खेत में, धरती आई चेत में” की प्रस्तुति से काव्यांजलि सत्र में थोड़ी मादकता का एहसास हुआ वही कानपुर के हास्य कवि हेमंत पांडे के चुटीले अंदाज पर श्रोताओं ने खूब ठहाके लगाए। युवा हास्य कवि हेमंत पांडे हास्य के अंदाज में अत्यंत गंभीर समस्याओं को रखकर सभा का ध्यान आकृष्ट कराया। गाजियाबाद से आए मंजे हुए कवि दिनेश रघुवंशी के गीत सुनकर श्रोता कभी भाव विभोर हुए तो कभी वीर रस से ओतप्रोत होकर उन्हें खूब वाहवाही दी। कार्यक्रम के बीच में मंच की संचालक तथा एक तरह से कवि सम्मेलन की संयोजक डॉ. सरिता शर्मा नेअपने मुक्तकों से समां बांधती रही। भोपाल मध्य प्रदेश से आई अनु सपन के श्रृंगार गीतों से सभागार का माहौल बदल गया। डॉक्टर अनु सपन की श्रृंगारिकत गीतों ने उपस्थित जनों की खूब वाहवाही बटोरी परंतु उससे भी अधिक वाहवाही और तालियां उन्हें उनके नारी विमर्श एवं नारी स्मिता से जुड़ी रचनाओं के प्रस्तुत करने पर मिली। कविता के क्षेत्र में अपार संभावनाओं से भरी अनु सपन काव्यांजलि के मंच पर अपनी भूमिका का निर्वाहन करने में पूर्णतः सफल रहीं। काव्यांजलि के सबसे अंत में डॉ. विष्णु सक्सेना को आमंत्रित किया गया। दरअसल ऐसा लग रहा था कि रायबरेली की जनता सभागार में उन्हें ही सुनने के लिए उपस्थित है। कवियों की दुनिया में एक बड़ा नाम डॉ विष्णु सक्सेना की एक के बाद एक रचनाओं से सभागार कभी गंभीर हो जाता तो कभी उनकी चुटीली नोकझोंक एवं प्रस्तुतीकरण से माहौल हल्का हो जाता। ‘चांदनी रात में.,’रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा…’ जैसे गीतों को सुनकर श्रोता अपने स्थान से खड़े होने पर मजबूर हो गए। बस एक और बस एक और कहकर वे काव्यांजलि सत्र में काव्य की बरसात करते रहे।

काव्यांजलि सत्र के उत्कर्ष पर पद्मश्री हलधर नाग उड़िया में काव्य पाठ किया। उनके काव्य के भाव इतने उच्च थे कि उड़िया भाषा का ज्ञान नहीं होने के बावजूद वहां बैठे हिंदी भाषी श्रोता और हिंदी पट्टी के श्रोता उनकी रचनाओं पर झूमते रहे। मंच संचालक सरिता शर्मा उन्हें कभी आधुनिक तुलसी तो कभी आधुनिक कबीर जैसे सम्मान से नवाजती रही। पद्मश्री हलधार नाग को सुनने के बाद मेरे मन में एक बार फिर यह बात पुष्ट हुई संवाद कभी भी भाषा की मोहताज नहीं होती। भाव भंगिमा और आंखों की भी अपनी एक भाषा होती है हालांकि उड़ीसा से आए विद्वान प्रोफेसर दिनेश माली ने उनके प्रस्तुति का हिंदी अनुवाद किया परंतु ऐसा लगा कि जैसे इसकी आवश्यकता ही नहीं थी।

रात्रि 11:30 बजे तक चले काव्यांजलि सत्र से उठने का किसी का नहीं चाह रहा था परंतु समय की सीमा का ध्यान रखते हुए काव्यांजलि सत्र का समापन आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान के संयोजक गौरव अवस्थी के आभार प्रदर्शन से समाप्त हुआ।

देर रात हम वापस होटल पहुंचे और हल्का- फुलका भोजन लेकर विश्राम के लिए चले गए।

 

 क्रमशः

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