नई दिल्ली

फिर क्यों नहीं दिखा अखिलेश का शौर्य; जब साथ में थे जयंत, राजभर और मौर्य, समझें समीकरण …

नई दिल्ली। यूपी चुनाव के नतीजे ने भाजपा की जीत और सपा की हार तय कर दी है, लेकिन इसने तमाम समीकरणों को भी बदल दिया है। चुनाव से पहले अखिलेश यादव अपनी रणनीति को बदलते हुए नजर आए थे। एमवाई यानी मुस्लिम यादव फैक्टर के साथ चलने वाली सपा ने इस बार छोटी पार्टियों से भी गठजोड़ किया था, जो अलग-अलग जातियों में अपनी पहचान रखती हैं। उनका वोट प्रतिशत भी 22 की बजाय 32 फीसदी तक बढ़ गया है। इसे अखिलेश यादव की सफलता माना जा रहा है, लेकिन भाजपा के वोट बैंक के आगे यह भी बौना साबित हुआ और वह विपक्ष में ही बने रहे।

इसका सीधा अर्थ यह माना जा रहा है कि अखिलेश यादव का मुस्लिम, यादव प्लस फैक्टर भी भाजपा से टकराने में समर्थ नहीं है। आरएलएडी, सुभासपा, अपना दल कमेरावादी, महान दल जैसी पार्टियों के साथ अखिलेश के गठजोड़ की काफी चर्चा हुई थी, लेकिन यह रणनीति में जीत में तब्दील नहीं हो सकी। अब सवाल यह है कि चूक कहां हो गई? इसके जवाब में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लाभार्थी वर्ग भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड साबित हुआ है। इस वर्ग के लोग हर जाति और समुदाय में मौजूद हैं, जिनके एक हिस्से ने भाजपा को वोट किया है। यही वजह रही कि पिछड़ों के नाम पर भाजपा का साथ छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता भी सपा को फायदा नहीं दे पाए और खुद अपनी ही सीट गंवा बैठे।

यहां तक कि यह कार्ड बेरोजगारी, महंगाई और आवारा पशुओं जैसे मुद्दे पर भी भारी पड़ा, जिसे लेकर कहा जा रहा था कि लोग इससे काफी नाराज हैं। ऐसे में अखिलेश यादव क्या कर सकते हैं कि भविष्य में भाजपा को मजबूत चुनौती दे सकें? इसका जवाब यह है कि उन्हें परसेप्शन के लेवल लड़ाई लड़नी होगी। जाति आधारित नेताओं की गोलबंदी से उनका पूरा समाज साथ नहीं आता है। ऐसे में उस परसेप्शन की काट ढूंढनी होगी, जो जमीन पर उनके खिलाफ काम करता है। जैसे सपा की सरकार आई तो गुंडाराज लौट आएगा, सपा के कार्यकर्ता बेकाबू हो जाएंगे। इसका जवाब सपा को तलाशना होगा।

यूपी की राजनीति की समझ रखने वाले एक विश्लेषक ने कहा कि पूरे प्रचार के दौरान अखिलेश यादव यह साबित नहीं कर पाए कि यदि सरकार मिली तो पहले जैसी गलती नहीं होगी। कानून व्यवस्था को वह ठीक करेंगे। शायद यही वजह थी कि महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे और लाभार्थी वर्ग के समर्थन के आधार पर भाजपा ने बड़ी बढ़त बना ली। इसके अलावा अखिलेश यादव ने नौकरियां देने और पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने का वादा किया, लेकिन उसे लेकर भी जनता को भरोसा नहीं दिला सके।

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