धर्म

बंजर नदी का संगम जहां मां नर्मदा अर्धचद्राकार स्वरूप में है …

नर्मदा परिक्रमा भाग – 5

 

अक्षय नामदेव। अगले दिन रविवार को सुबह 9 बजे लगभग हम सूरजकुंड से अगले घाट के लिए रवाना हुए। कुछ देर चलते रहने के बाद हम महाराजपुर पहुंचे। महाराजपुर नर्मदा का प्रमुख तीर्थ है। मंडला शहर के एकदम समीप स्थित महाराजपुर में मां नर्मदा और बंजर नदी का संगम है। इसे संगम घाट कहा जाता है जिसकी पौराणिक मान्यता है। यहां पर नर्मदा अर्धचंद्राकार स्वरूप में है। यहां स्थित घाट है तो प्राचीन परंतु इसका जीर्णोद्धार कराया गया है ऐसा प्रतीत होता है। महाराजपुर स्थित संगम घाट का वैसा ही महत्व है जैसे प्रयागराज का इसलिए यहां प्राय:भीड़ रहती है। मृत्यु से जुड़े अनेक तरह जैसे अस्थि विसर्जन, मुंडन संस्कार यहां होते रहते हैं।

संगम घाट के समक्ष मंडला का किला है। संगम स्थल पर अथाह जल राशि है जिस पर लोग नौका विहार का आनंद ले रहे थे परंतु परिक्रमा वासी होने के कारण हम नौकायन नहीं कर सकते थे। हम लोगों ने वहां संगम तट में जाकर पूजा अर्चना की। संगम घाट पर मंदिरों के समूह है जिसमें मां नर्मदा का मंदिर, शनि देव भगवान का मंदिर तथा मां बूढ़ी माई का मंदिर है जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ थी। संगम स्थल का वातावरण अत्यंत धार्मिक अध्यात्मिक था इसके बावजूद तट पर पसरी गंदगी हमारा मन विचलित कर रही थी।

जबलपुर संभाग का प्रमुख जिला मंडला ऐतिहासिक नगर है। गोंडवाना रानी वीरांगना दुर्गावती यहां की शासक रही है ऐसा कौन होगा जो उन्हें ना जानता होगा? इस मंडला नगर को मां नर्मदा तीन ओर से घेरे हुए हैं इसलिए मंडला में नर्मदा घाटों की बहुलता है। नर्मदा तट पर स्थित होने के कारण इस ऐतिहासिक नगर का वातावरण अत्यंत अध्यात्मिक धार्मिक रहता है तथा यहां तीर्थ स्थलों, प्राकृतिक स्थलों की भरमार है। प्रसिद्ध कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मंडला के समीप ही स्थित है। प्रमुख घाट सूरजकुंड, सहस्त्रधारा, रपटा घाट, महाराजपुर का संगम घाट के अलावा देवगांव का संगम घाट जहां मां नर्मदा एवं बुढनेर नदी का संगम हुआ है दर्शनीय है। इसके अलावा मंडला का किला, रानी दुर्गावती संग्रहालय, मटियारी बांध इत्यादि देखने योग्य है परंतु परिक्रमा वासी होने की मर्यादा का निर्वहन करते हुए हमने नर्मदा के दक्षिण तट के ही घाटो का दर्शन पूजन किया।

परिक्रमा जाते समय घर पर पिताजी ने कहा था कि मंडला नर्मदा घाट में राजौरिया साहब से मिल लेना, वे दादा भाई के अत्यंत प्रेमी थे। राजौरिया साहब पूर्व में रेंजर थे परंतु बाद में उन्होंने बैराग धारण कर लिया और साधु बन गए और वही मंडला में नर्मदा तट में ही रम गए। दादा भाई जब परिक्रमा पर गए थे तब राजोरिया साहब ने रेंजर रहते हुए नर्मदा तट पर उनकी खूब सेवा की थी। पिताजी के आदेशानुसार मैंने उन्हें ढूंढने की कोशिश की पर पता चला कि नर्मदा पार जाना होगा सो हमने राजौरिया साहब से मिलने का इरादा त्याग दिया। रहने को तो मंडला में मेरे बड़े मामा का बेटा आलोक भी रहता है, वहां वह बीएसएनएल में एसडीओ है। मेरे परिक्रमा पर होने की जानकारी जब उसे मिली थी तब वह कई बार फोन कर चुका था। कह रहा था भैया मंडला में मुझे सेवा का अवसर दीजिएगा परंतु मैंने उसे परेशान करना उचित नहीं समझा ।हां रास्ते में एक बार बीएसएनएल का बैलेंस खत्म होने पर उसे अवश्य कहा था कि इस पर बैलेंस डलवा देना। उसने आज्ञा का पालन किया।

नर्मदा तट पर बसे इस खूबसूरत शहर मंडला में दर्शनीय एवं समय बिताने के लिए काफी कुछ है परंतु हमें आगे बढ़ना था । कभी फुर्सत में यहां मंडला दर्शन करने अवश्य आएंगे ऐसा सोचते हुए मैंआगे बढ़ने की तैयारी करने लगा। तभी याद आया मेरे एक शिक्षक श्री तुलसीदास हअसाटी जिन्हें में भैया कहता हूं वे भी मंडला में प्राचार्य रहते हुए निवासरत है। मैं सोच रहा था कि जब उन्हें पता चलेगा कि मैं यहां से परिक्रमा करते हुए निकला हूं और उन्हें जानकारी नहीं दी तब वह मुझ पर कितना नाराज होंगे? असाटी भैया मूल रूप से दमोह के हैं तथा उनकी नौकरी वर्ष 1985 86 में व्याख्याता गणित के पद पर शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला अंडी मरवाही में लगी थी।

उन्होंने मेरी हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान मेरा खूब मार्गदर्शन किया था। कह सकता हूं कक्षा दसवीं बोर्ड की नैया पार मैंने उन्हीं के मार्गदर्शन पर लगाई थी इसलिए उनका स्मरण होना स्वभाविक था। असाटी भैया का विवाह पेंड्रा में रहते हुए ही हुआ था इसलिए किरण भाभी से भी अच्छा परिचय है। कई बार भाभी को लिवाने के लिए असाटी भैया ने मुझे जबलपुर और दमोह भेजा था। वे भूली बिसरी यादें अभी भी मेरे जेहन में है। 9 नवंबर 2020 को मम्मी के स्वर्गवासी होने पर संवेदनावश असाटी भैया एवं भाभी पेंड्रा आकर अपनी पारिवारिक निकटता एवं मां के प्रति प्रेम का परिचय दिया था।

फिर कभी मंडला आऊंगा ऐसा मन में विचार कर हम मंडला महाराजपुर के मां नर्मदा बंजर संगम से हर हर नर्मदे के जयघोष के साथ रवाना हो गए। मां नर्मदा के जय घोष से शरीर का रोम रोम रोमांचित हो उठा।

क्रमशः

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