मध्य प्रदेश

चुनाव में सिंधिया की भूमिका : भाजपा से जुड़े सिंधिया को हो गए 3 साल 5 माह और 8 दिन, 3 साल में सिंधिया ने पार्टी के बड़े नेताओं के बीच बनाई जगह

पार्टी के ही दिग्गज नेताओं के विरोध के बावजूद रहे मौन, भोपाल-दिल्ली हवाई यात्रा रही चौंकाने वाली

भोपाल। कांग्रेस के लिए 2018 का विधानसभा चुनाव और इस बार साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव 2023 में काफी अंतर दिखाई दे रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने मप्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे पर चुनाव लडक़र सरकार बनाई थी, लेकिन आज स्थिति बिलकुल इसके विपरीत है। कांग्रेस हाईकमान से नाराज होकर सिंधिया ने 11 मार्च 2020 को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इ्स्तीफा दे दिया। 19 साल तक कांग्रेस की सेवा करने वाले सिंधिया को पार्टी छोड़े 3 साल 5 माह 8 दिन (12 मार्च 2020 से 19 जुलाई 2023) हो गए है, आज वे भाजपा के शीर्ष नेताओं की सूची में शामिल है। भाजपा से जुडऩे के बाद चुनाव में दूसरी बार सिंधिया और कांग्रेस का आमना-सामना हो रहा है। पहली बार उपचुनाव में इनका सामना हुआ था। पता चला है कि भाजपा हाईकमान सिंधिया को बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी कर रहा है।

जिस चेहरे पर कांग्रेस सत्ता में आई थी, वही चेहरा पार्टी के खिलाफ

राजनीति भी क्या खेल है। किसी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि पांच साल पहले कांग्रेस ने जिस चेहरे पर सरकार बनाई थी, आज वही चेहरा पार्टी के खिलाफ चुनावी मैदान में है। 2018 के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस 114 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई थी। तब राजनैतिक विशेषज्ञ भी यही कयास लगा रहे थे कि सिंधिया को प्रदेश की कमान सौंपी जाएगी, लेकिन एन वक्त पर पार्टी प्रमुख राहुल गांधी ने कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंप दी थी।

पार्टी हाईकमान के इस निर्णय से नाराज होकर सिंधिया और उनके 15 से 20 समर्थकों ने 11 मार्च 2020 को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इ्स्तीफा दे दिया। इस विद्रोह के साथ ही कमलनाथ की सरकार गिर गई। सरकार गिरने से पहले कमलनाथ को 15 महीने सरकार चलाने का मौका मिला था। लेकिन, सिंधिया और कमलनाथ के बीच विवाद के चलते शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की चौथी बार सरकार बन गई।

चारों तरफ से विरोध सहने के बाद भी शांत रहे महाराज

कांग्रेस पार्टी से नाता तोडऩे के बाद महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। भाजपा में रहते हुए सिंधिया के तीन साल से ज्यादा का समय हो गया, आज वे केंद्र में मंत्री हैं। लेकिन, पिछले महीनों से अपनी ही पार्टी के दिग्गजों ने उनके खिलाफ तगड़ी घेराबंदी कर रखी थी। इतना विरोध होने के बाद भी सिंधिया ने कभी अपने दिग्गजों के खिलाफ बयानबाजी नहीं की। वे विरोध सहते रहे और शांत रहे। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि सिंधिया के मामले में सरकार संगठन और संघ इसलिए मौन रहे कि वे पार्टी हाईकमान की गुड लिस्ट के सदस्य हैं । विगत 3 सालों में सिंधिया ने बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ अपने संबंध इतने मजबूत कर लिए हैं कि ऐसे लगता है, जैसे वह शुरू से ही बीजेपी का हिस्सा रहे हैं।

कोई नहीं समझ पाया ‘वे’ सिंधिया को अपने साथ क्यों ले गए

अगर किसी पार्टी का शीर्ष नेता अपनी ही पार्टी के नेता को अचानक अपने साथ हवाई यात्रा पर ले जाए तो पार्टी ही नहीं सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनना स्वाभाविक है। 21 दिन पहले भोपाल में ऐसी ही एक घटना हुई। 27 जून को भोपाल दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, ज्योतिरादित्य सिंधिया को वायुसेना के विशेष विमान में अपने साथ बैठाकर दिल्ली ले गए। जबकि, पहले से सिंधिया को साथ ले जाने जैसा कोई प्लान भी नहीं था। मोदी के साथ सिंधिया के दिल्ली पहुंचने से पहले ही प्रदेश भाजपा में ऐसी हलचल मची कि पार्टी के तमाम नेता, मंत्री, पदाधिकारी, सब चौंक गए। घटना 20-21 दिन पुरानी जरूर हो गई हो, लेकिन अभी भी सवाल बना हुआ है कि आखिरकार सिंधिया को पीएम अपने साथ दिल्ली क्यों ले गए। इस घटना से सिंधिया राजनीति का केंद्र बन गए हैं। इससे ये भी संकेत मिलते हैं कि आने वाले दिनों में सिंधिया का कद और बढ़ेगा।

2018 में ऐसे चला था कमलनाथ व सिंधिया के बीच घटनाक्रम

  • 28 नवंबर 2018 को मतदान हुआ
  • 12 दिसंबर 2018 को आए परिणाम- कांग्रेस को 114
  • 17 दिसंबर 2018 में कमलनाथ ने सीएम पद की शपथ ली
  • 10 मार्च 2020 को सिंधिया समेत 20 विधायकों ने इस्तीफा दिया
  • 11 मार्च 2020 को सिंधिया भाजपा में शामिल हुए
  • 20 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दिया पद से इस्तीफा
  • 23 मार्च 2020 को चौथी बार शिवराज सीएम बने
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