देश

मध्य प्रदेश में स्कूलों में गुरु पूर्णिमा का आयोजन अनिवार्य, कांग्रेस ने जताया विरोध

भोपाल

मध्य प्रदेश में मोहन यादव की सरकार के एक फरमान को लेकर सियासत तेज हो गई है। पूरा मामला गुरु पूर्णिमा से जुड़ा है। दरअसल, सभी सरकारी और निजी स्कूलों को डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 20 और 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा उत्सव के उपलक्ष्य में एक विशेष दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कहा है। ओपको बता दें कि हिंदू माह आषाढ़ की पूर्णिमा (पूर्णिमा के दिन) को मनाया जाने वाला गुरु पूर्णिमा उत्सव भारत, नेपाल और भूटान में हिंदुओं, जैनियों और बौद्धों द्वारा सभी आध्यात्मिक और शैक्षणिक गुरुओं को सम्मान देने के लिए समर्पित है।

पवित्र श्रावण माह की शुरुआत से पहले यह त्योहार पारंपरिक रूप से किसी के चुने हुए आध्यात्मिक शिक्षकों/गुरुओं के सम्मान में मनाया जाता है। मंगलवार को जारी आदेश में, राज्य सरकार ने सभी स्कूलों (सरकारी और निजी) को 1 जुलाई की राज्य कैबिनेट बैठक में राज्य के सीएम द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार, 20 और 21 जुलाई को दो दिवसीय गुरु पूर्णिमा उत्सव आयोजित करने का निर्देश दिया। सरकारी आदेश के मुताबिक, दो दिवसीय उत्सव के पहले दिन (20 जुलाई) को प्रार्थना के बाद शिक्षक गुरु पूर्णिमा उत्सव के महत्व और देश में सदियों से चली आ रही गुरु-शिष्य परंपरा पर प्रकाश डालेंगे। उसी दिन छात्र गुरुकुल शिक्षा की प्राचीन प्रणाली और भारतीय संस्कृति पर इसके प्रभाव पर निबंध लिखेंगे।

दूसरे दिन (21 जुलाई) जो कि रविवार है, विशेष सरस्वती वंदना (हिंदू देवी सरस्वती के लिए प्रार्थना), गुरु वंदना (शिक्षकों/गुरुओं के लिए प्रार्थना) और पवित्र दीप प्रज्ज्वलन होगा। इसके बाद शिक्षकों का अभिनंदन और शिक्षकों एवं विद्यार्थियों द्वारा अपने शिक्षकों के संस्मरणों पर भाषण दिया जाएगा। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा मंगलवार को जारी आदेश में गुरु पूर्णिमा उत्सव के दूसरे दिन के आयोजन में प्रत्येक स्कूल के संतों, शिक्षकों (सेवानिवृत्त शिक्षकों सहित) और पूर्व छात्रों को आमंत्रित करने का उल्लेख किया गया है।

कांग्रेस का विरोध

हालाँकि, विपक्षी कांग्रेस ने स्कूल शिक्षा विभाग के निर्देश का विरोध करते हुए कहा कि यह धर्मनिरपेक्षता की भावना के खिलाफ है, जो संविधान का अभिन्न अंग है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अब्बास हाफिज ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां सभी धार्मिक समुदायों के छात्र स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ते हैं। इसलिए स्कूलों में एक धर्म से जुड़ी एक बाध्यकारी नई परंपरा शुरू करने से विवाद पैदा हो सकता है। यदि इसे सभी के लिए अनिवार्य कर दिया गया, तो अन्य समुदायों के छात्र अपनी परंपराओं से संबंधित कार्यक्रम शुरू करने की मांग कर सकते हैं।

कांग्रेस का कहना है कि सरकार का यह कदम धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा दे सकता है और स्कूलों में धार्मिक तटस्थता को प्रभावित कर सकता है। वहीं, राज्य सरकार का कहना है कि यह फैसला शिक्षा में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए लिया गया है।

इस फैसले के विरोध और समर्थन दोनों ही पक्षों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, यह देखा जाना बाकी है कि यह आदेश कैसे लागू किया जाएगा और इसके क्या प्रभाव होंग।

 

Back to top button