मध्य प्रदेश

हरदा हादसे के बाद अब पलायन, कब धराशाही हो जाए घर पता नहीं

हरदा
बैरागढ़ पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट में जहां कई लोगों ने जान गंवा दी और दर्जनों परिवार ऐसे हैं, जिनके पास अब रहने को घर नहीं है। कई लोगों के घर विस्फोट में खंडहर बन गए तो कई लोग क्षतिग्रस्त हो चुके मकानों में अब नहीं रहना चाहते। उनमें इतना डर है कि वे लोग अपने घर में कभी आना नहीं चाहते। ऐसे दो दर्जन से अधिक परिवार हैं, जो अपने अपने घर छोड़कर कहीं दूर जाकर रहना चाहते हैं। कई परिवार जो बची कुची सामग्री लेकर अब वहां से निकलते दिखे। इनमें महिला, पुरुष और बच्चे तक शामिल थे।

कब धराशाही हो जाए घर पता नहीं
33 वर्षीय महेंद्र चौहान का घर भी फैक्ट्री में हुए विस्फोट की जद में आ गया है। घर की दीवारों, छत और जमीन में गहरी दरारें आ गई है। कहने को घर का ढांचा खड़ा है, लेकन कब धराशाही हो जाए कहा नहीं जा सकता है। महेंद्र ने चर्चा में बताया कि वे मिस्त्री का काम करते हैं। मेहनत कर बड़ी मुश्किल से मकान बनाया था। घर में पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था। जब ब्लास्ट हुआ तब वह काम पर गया था। पत्नी और बच्चे भी बाजार करने गए थे। ब्लास्ट की खबर सुनकर मौके पर आए लेकिन तब तक सब कुछ नष्ट हो चुका था। शुक्रवार को मकान के अंदर से बचा कुचा सामान लेकर साईं मंदिर क्षेत्र में किराए के कमरे में रहने गए हैं। घर का खर्च अब कैसे चलेगा यह कह पाना मुश्किल है।
 
जले हुए कपड़े समेट दूसर जगह चला परिवार
फैक्ट्री का विस्फोट इतना तीव्र था कि आसपास के आधा किमी के एरिया में कुछ नहीं बचा। कई परिवार तो ऐसे हैं, जिनके शरीर पर पहने हुए कपड़े ही बचे हैं। इनमें से एक बबीता बाई थी हैं, जो मजदूरी करती हैं। वे एक पोटली में कुछ जले हुए कपड़े लेकर नम आखों से दूसरी जगह जाती दिखीं। चर्चा में बबीता ने बताया कि उनका पूरा परिवार मजदूरी करता है। घर में पांच सदस्य हैं। अब कहां रहेंगे यह उन्हें नहीं पता है। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने उनके लिए कोई व्यवस्था भी नहीं की।
 
हाथ में छत पंखा लिए जाते दिखे युवा
फैक्ट्री से पचास मीटर दूर रहने वाले रवि चौहान ने बताया कि वह मजदूरी करता है। कभी फैक्ट्री में काम करता तो कभी खेतों में मकान टीन की छत वाला था, जो धमाके से बिखर गया। अब बस एक छत पंखा बचा है। उसे लेकर जा रहा हूं। उसकी मदद करने के लिए उसके दो दोस्त आशुतोष और शंकर आए। भारी मन से रवि ने बताया कि घर में उसके माता-पिता और वह साथ रहते थे। सब ठीक है, लेकिन रहने को छत नहीं बची।

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