धर्म

मां नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा क्षेत्र अमरकंटक में स्थित है छत्तीसगढ़ का तीर्थ जालेश्वर महादेव धाम …

नर्मदा परिक्रमा भाग -40

अक्षय नामदेव। मां नर्मदा के उद्गम अमरकंटक से सटे प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक ज्वालेश्वर महादेव है जो अमरकंटक स्थित नर्मदा कुंड मंदिर से उत्तर दिशा की ओर अमरकंटक से राजेंद्रग्राम मार्ग पर लगभग 8 किलोमीटर पर स्थित है जबकि पेंड्रारोड रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी मात्र 16 किलोमीटर है।

छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला के ग्राम तवांडबरा में स्थित ज्वालेश्वर महादेव पर मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ सहित पूरे भारत के श्रद्धालुओं की आस्था है और यही कारण है कि पूरे वर्ष भर ज्वालेश्वर महादेव में तीर्थयात्रियों परिक्रमा वासियों का आना जाना लगा रहता है। ज्वालेश्वर महादेव को बाणलिंग भी कहा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार सतयुग में बलि नाम के श्रेष्ठ दैत्य के पुत्र जिसका नाम बाणासुर था। बाणासुर की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने वर मांगने को कहा था उनके दिए गए वरदान के अनुसार ज्वालेशवर महादेव बाणलिंग कहलाया। मान्यता के अनुसार जालेश्वर धाम में स्नान तर्पण श्राद्ध आदि कर्म करने से मनुष्य जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। ज्वालेश्वर धाम शिवलिंग के नीचे से ही जोहिला नदी का उद्गम हुआ है। शिवलिंग के नीचे से पानी रहस्यमय तरीके से बहता है तथा कुएं में जाता है नदी का उद्गम कुएं से माना जाता है बाद में कुछ दूरी से नदी बहती हुई दिखाई देती है। यह नदी जोहिला नदी अमरकंटक की तराई से उतर कर अनूपपुर जिले को सींचती हुई सोन में समा जाती है।

नर्मदा पंचकोशी क्षेत्र में स्थित होने के कारण ज्वालेश्वर महादेव का काफी महत्व है। तीर्थ स्थली अमरकंटक आने वाले तीर्थयात्री अनिवार्य रूप से मां नर्मदा का जल लेकर ज्वालेश्वर महादेव पहुंचते हैं तथा भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं। प्रत्येक वर्ष श्रावण माह में कांवरियें मां नर्मदा के उद्गम अमरकंटक कुंड से कांवर में नर्मदा जल लेकर पैदल चलते हुए ज्वालेश्वर महादेव पहुंचते हैं तथा नर्मदा जल से ज्वालेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं यह बहुत पुण्य फलदाई होता है। ज्वालेश्वर महादेव मंदिर परिसर में ही नंदी बाबा के पीछे भगवान शनिदेव का मंदिर है जहां सनी भगवान का तेल अभिषेक करने से शनि पीड़ितों को लाभ मिलता है। मंदिर के पूर्वी हिस्से में ब्रह्मलीन महंत ज्ञानेश्वर पुरी महाराज की समाधि बनी हुई है परिसर में एक अन्य साधु निरंजनपुरी की भी समाधि है। मंदिर के पीछे स्थित पीपल के वृक्ष के नीचे दक्षिण मुखी हनुमान विराजित है। महंत ज्ञानेश्वर पुरी महाराज के द्वारा ज्वालेश्वर धाम में गौ सेवा भी नियमित रूप से चल रही है।

ज्वालेश्वर महादेव प्राकृतिक शिवलिंग है तथा जालेश्वर महादेव का मंदिर पंच दशनाम जूना अखाड़ा काशी के द्वारा संचालित मंदिर है जिसके संस्थापन में ब्रह्मलीन महंत नरेश पुरी महाराज का विशेष योगदान रहा है। महंत नरेश पुरी महाराज के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद उनके परम शिष्य महंत ज्ञानेश्वर पुरी महाराज द्वारा ज्वालेश्वर धाम अमरकंटक तीर्थ जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही का विधिवत संचालन किया जा रहा है। ज्वालेश्वर धाम अमरकंटक तीर्थ के ठीक सामने सड़क के बाईं ओर अन्नपूर्णा माता का मंदिर के निर्माण का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। इस अन्नपूर्णा माता के मंदिर की निकट भविष्य में प्राण प्रतिष्ठा की जानी है। इस मंदिर का निर्माण भी ब्रह्मलीन महंत नरेश पुरी महाराज के द्वारा तमाम तरह थाना पुलिस, कोर्ट कचहरी में पैसा खर्च करने के बावजूद ज्वालेश्वर महादेव की एक-एक पाई जोड़कर अपने जीते पूर्ण कर दिया था।

ज्वालेश्वर धाम अमरकंटक के ठीक ढंग से समयानुसार विकास ना होने में प्रमुख बाधा छत्तीसगढ़ राज्य विभाजन के बाद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच चल रहा सीमा विवाद प्रमुख रहा जिसके कारण ज्वालेश्वर धाम कोर्ट कचहरी एवं विवादों में लंबे समय तक फंसा रहा जिसमें ज्वालेश्वर धाम आश्रम का काफी पैसा खर्च हुआ। अभी 2 वर्ष पूर्व ही अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश पेंड्रारोड जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही छत्तीसगढ़ द्वारा ज्वालेश्वर धाम के प्रकरण का निराकरण कर दिया गया है तथा यह तीर्थ छत्तीसगढ़ राज्य के हिस्से में माना गया है ऐसे में अब इस तीर्थ के विकास मैं तेजी आने की उम्मीद है। ज्वालेश्वर धाम अमरकंटक में नियमित रूप से अन्नक्षेत्र का संचालन किया जाता है। दैनिक खिचड़ी प्रसाद के अलावा जो भी परिक्रमा वासी श्रद्धालु एवं तीर्थयात्री यहां पहुंचते हैं उनकी यथोचित अन्न सेवा ज्वालेश्वर धाम अमरकंटक तीर्थ के महंत ज्ञानेश्वरपुरी महाराज के मार्गदर्शन में एवं यहां के व्यवस्थापक राजेश अग्रवाल रज्जे के द्वारा की जा रही है। मां अन्नपूर्णा मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के बाद अन्न क्षेत्र के विस्तार की भी योजना तैयार की जा रही है।

यहां पर उल्लेखनीय है कि अमरकंटक से सटे छत्तीसगढ़ में ही राजमेंरगढ है जो मां नर्मदा पंचकोसी परिक्रमा क्षेत्र में ही स्थित है जो मैंकल पर्वत का सबसे ऊंचा स्थान हैं। प्रकृति दर्शन एवं पर्यटन के लिहाज से राजमेंरगढ़ अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी वर्ष छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने राजमेरगढ में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लगभग एक करोड़ की योजना प्रस्तावित की है। ज्वालेश्वर पहुंचने वाले पर्यटक राजमेरगढ में प्रकृति दर्शन करने अवश्य जाते हैं। ज्वालेश्वर महादेव मंदिर के ही समीप लोढेश्वर महादेव एवं अमरेश्वर महादेव तीर्थ स्थित है। ज्वालेश्वर महादेव से अमरेश्वर तीर्थ होकर दुर्गा धारा धर्म पानी या दुर्गाधारा होकर ठाढ़पथरा होकर माई का मड़वा जाते हैं जो कि मां नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा क्षेत्र का तीर्थ है। यह तीर्थ स्थान नवगठित जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही में आते है। पूर्व में अमरकंटक ज्वालेश्वर धाम पहुंचना कठिन होता था परंतु अब मुख्य मार्ग से पहाड़ के ढलान में मार्ग निर्माण से यहां आना जाना अत्यंत सरल हो गया है। गौरेला से ज्वालेश्वर तक पक्के सड़क मार्ग के निर्माण के बाद से पेंड्रा रोड गौरेला से ज्वालेश्वर महादेव होकर अमरकंटक तीर्थ की दूरी काफी कम हो गई है।

हर हर नर्मदे                                                                                                                                                                        क्रमशः

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