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चीन के लिए इस्तेमाल होने के दावे पर बोला लेफ्ट : इजरायल और अमेरिका के एजेंट रहे सत्ताधारी दल …

नई दिल्ली । पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले की ओर से अपनी पुस्तक ‘द लॉन्ग गेम: हाउ द चाइनीज़ नेगोशिएट विद इंडिया’ में लेफ्ट पार्टियों को लेकर किए गए दावे से विवाद छिड़ गया है। गोखले ने अपनी पुस्तक में दावा किया है कि 2007 और 2008 के बीच भारत-अमेरिका परमाणु सौदे के दौरान चीन ने भारत में लेफ़्ट पार्टियों के साथ ‘क़रीबी संबंधों’ का इस्तेमाल करके ‘घरेलू विपक्ष तैयार’ किया था। गोखले के इस दावे पर लेफ्ट पार्टियों ने हमला बोला है। गोखले के दावे को लेकर पूछे जाने पर विस्वाम ने कहा, ‘ऐसे गैर-जिम्मेदाराना और मूर्खतापूर्ण दावों पर कोई जवाब देने की जरूरत नहीं है।

भारत में लेफ्ट पार्टियां किसी भी अन्य दक्षिणपंथी दल या फिर नौकरशाही के मुकाबले ज्यादा देशभक्त रही हैं।’ वहीं सीपीएम के नेता हन्नान मोल्लाह ने उलटा दूसरे दलों पर बरसते हुए कहा कि देश में सत्ताधारी बुर्जुआ दल अमेरिका और इजरायल के एजेंट के तौर पर काम करते हैं। लेफ्ट पर कभी किसी विदेशी ताकत प्रभाव नहीं रहा। मोल्लाह ने कहा कि वामपंथी दलों पर कभी कोई विदेश प्रभाव नहीं रहा। हमारी हमेशा स्वतंत्र सोच रही है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के नेता बिनॉय विस्वाम ने गोखले के दावे को मूर्खतापूर्ण और गैरजिम्मेदाराना करार दिया है।

उन्होंने कहा कि लेफ्ट ने कभी कोई ऐंटी-नेशनल काम नहीं किया है। दरअसल संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) रहते हुए गोखले 2007-2009 के दौरान विदेश मंत्रालय में चीन के मामले देख रहे थे। इस दौरान भारत की समझौते पर बात चल रही थी और उसे न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में बीजिंग के राज़ी होने के बाद छूट मिल गई थी। 39 साल के अपने राजनयिक करियर में गोखले ने 20 साल चीन पर काम किया है। यही नहीं वो चीनी मंदारिन भाषा के भी बड़े जानकार हैं। इस दौरान वह सात साल विदेश मंत्रालय में चीन डेस्क पर और सात साल पूर्वी एशिया डेस्क पर रहे। वह चीन में भारत के राजदूत भी रहे और चीन पर नज़र रखने वालों में उन्हें देश के सबसे बड़े जानकारों में शुमार किया जाता है।

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