धर्म

जानिए क्यों महत्वपूर्ण है रंग पंचमी का त्योहार …

आज रंग पंचमी पर विशेष

रंग पंचमी होली के समापन का अंतिम दिन है। होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी और धुलेंडी के चौथे दिन रंग पंचमी मनाई जाती है। होली दहन फाल्गुन मास की शुक्ल पूर्णिमा को होता है जबकि धुलेंडी उसके दूसरे दिन चैत्र मास के पहले दिन अर्थात एकम के दिन होता है। चैत्र माह हिन्दू कैलेंडर का पहला माह है। माह की शुरुआत रंगोत्सव से होती है। इसके बाद चैत्र कृष्ण पक्ष की पंचमी को रंग पंचमी मनाई जाती है। रंग पंचमी की धूम मध्यप्रदेश में ही होती है, अन्य राज्यों में उतना उत्साह नहीं होता है।

कहते हैं कि इस दिन श्रीकृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। यह त्योहार देवताओं को समर्पित है। यह सात्विक पूजा आराधना का दिन होता है। मान्यता है कि कुंडली का बड़ा से बड़ा दोष इस दिन पूजा-आराधना से ठीक हो जाता है।

धन लाभ पाने और गृह कलेश दूर करने के लिए भी यह रंग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा होती है। रंग पंचमी के दिन प्रत्येक व्यक्ति रंगों से सराबोर हो जाता है। कई लोग इस दिन ताड़ी या भांग पीते हैं और नृत्य एवं गान का मजा लेते हैं।

शाम को स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद गिल्की के पकोड़े का मजा लिया जाता है। इस दिन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पकवान बनाए जाते हैं। जैसे महाराष्ट्र में पूरणपोली बनाई जाती है। लगभग पूरे मालवा प्रदेश में होली पर जलूस निकालने की परंपरा है, जिसे गेर कहते हैं। जलूस में बैंड-बाजे-नाच-गाने सब शामिल होते हैं।

होलिका दहन के बाद ‘रंग उत्सव’ मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। श्रीकृष्ण ने ही होली के त्योहार में रंग को जोड़ा था।

रंग पंचमी होली का ही एक रूप है जो देश के कई क्षेत्रों में चैत्र मास की कृष्ण पंचमी को मनाया जाता है। दरअसल होली का उत्सव कई दिनों तक चलता है और इसकी तैयारियां होली के दिन यानि फाल्गुन पूर्णिमा से लगभग एक महीने पहले शुरू हो जाती है। फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के पश्चात अगले दिन सभी लोग उत्साह में भरकर रंगों से खेलते हैं। रंगों का यह उत्सव चैत्र मास की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर पंचमी तक चलता है। इसलिये इसे रंग पंचमी कहा जाता है।

रंग पंचमी कोकण क्षेत्र का खास त्यौहार है महाराष्ट्र में तो होली को ही रंग पंचमी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भी रंग इस्तेमाल किए जाते हैं जिन्हें एक दूसरे पर लगाया जाता है, हवा में उड़ाया जाता है उससे विभिन्न रंगों की ओर देवता आकर्षित होते हैं। साथ ही इससे ब्रह्मांड में सकारात्मक तंरगों का संयोग बनता है व रंग कणों में संबंधित देवताओं के स्पर्श की अनुभूति होती है।

महाराष्ट्र में रंग पंचमी …

रंगवाली होली यानि धुलंडी से लेकर पंचमी तिथि तक यहां जमकर होली खेली जाती है। रंग पंचमी इस पर्व का अंतिम दिन होता है। माना जाता है कि यह मछुआरों के लिए भी बहुत विशेष होता है। इस दिन सब नाचने-गाने में मस्त होते हैं। रंग पंचमी पर एक विशेष प्रकार का मीठा पकवान भी घरों में बनाया जाता है जिसे पूरनपोली कहा जाता है। जगह-जगह पर दही-हांडी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है जिसमें महिलाएं मटकी फोड़ने वालों पर रंग फेंकती हैं ताकि वे अपने उद्देश्यों में सफल न हो सकें। जो भी मटकी फोड़ने में सफल होता है उसे पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है और वह होली किंग ऑफ द ईयर कहलाता है।

वास्तव में रंग पंचमी के द्वारा एक प्रकार से तेजोमय सगुण स्वरूप का रंगों के माध्यम से आह्वान भी किया जाता है। रंग पंचमी अनिष्टकारी शक्तियों पर विजय प्राप्ति का उत्सव भी है। मान्यता है कि रज-तम के विघटन से दुष्टकारी या कहें पापकारी शक्तियों का उच्चाटन भी इस दिन होता है।

महाराष्ट्र ही नहीं मध्य प्रदेश के इंदौर में रंग पंचमी को पारंपरिक रूप से मनाया जाता है। इस दिन पूरे शहर में रंगारंग जुलूस निकाले जाते हैं। यहां होली के पश्चात रंग पंचमी के दिन पुन: एक दूसरे पर रंग उड़ेले जाते हैं। बाजे-गाजे के साथ जुलूस के रूप में लोग निकलते हैं, इस जुलूस को गेर कहा जाता है। इसमें सभी धर्म के लोग शामिल होते हैं। पूरा इंदौर इस दिन विभिन्न रंगों में रंगा नजर आता है और सांस्कृतिक उत्सवों की धूम मची रहती है। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी इस दिन धार्मिक सांस्कृतिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं।

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