राजस्थान

बाल-विवाह का दंश झेल हेमलता चौधरी बनी पहली महिला थानेदार: पढ़ाई को लेकर सुनने पड़े ताने, दोस्तों से कर्ज लेकर की तैयारी …

बाड़मेर । कच्ची उम्र में की गई ऐसी जिद को अक्सर लोग मजाक मान लेते हैं। हेमलता चौधरी के साथ भी ऐसा हुआ। घरवालों ने महज 17 साल की उम्र में उसकी शादी कर दी, 21 साल की उम्र में मां बन गई। आंगनवाड़ी एक्टिविस्ट बनकर बच्ची को पालने के साथ-साथ ग्रेजुएशन की। करीब 8 साल तक महज 3500 रुपए की नौकरी की। लोगों से कर्ज लेकर पढ़ाई की। रिश्तेदारों से ताने सुने।

घरवाले-ससुराल वाले चारदीवारी में कैद करना चाहते थे, लेकिन मन में जिस वर्दी से हेमलता को 8 साल की उम्र में प्यार हुआ, उसे 18 साल बाद पाकर ही दम लिया। खाकी रंग की टू-स्टार वर्दी में थानेदार बनकर अपने गांव पहुंची हेमलता को देख सब लोग चौंक गए। भाइयों ने कंधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया।

दरअसल, सरणू चिमनजी गांव दुर्गाराम जाखड़ के घर जन्मी हेमलता चौधरी का 7 जुलाई 2021 को एसआई पद पर चयन हो गया था। इसके बाद 9 जुलाई को राजस्थान पुलिस एकेडमी जयपुर में जॉइन कर लिया था। तब से हेमलता का प्रोबेशन चल रहा है। फिलहाल अजमेर में पोस्टेड हैं। बीते दिनों एसआई (उप निरीक्षक) हेमलता वर्दी पहनकर अपने गांव आईं।

भाइयों ने हेमलता को कंधों पर बैठाकर पूरे गांव में घूमाया। परिवार के लोगों व गांव वालों ने माला पहनाकर मुंह मीठा भी करवाया। वहीं, महिलाओं ने मंगल गीत गाकर स्वागत किया गया। किसान पिता ने बेटी को साफा पहनाया तो थानेदार बेटी ने पुलिस की टोपी अपनी मां को पहना दी।

थानेदार हेमलता जाखड़ ने बताया कि किसान परिवार की बेटी हूं। जीवन में उतार-चढ़ाव देखे हैं। मेरे परिवार में पहली गवर्नमेंट जॉब हासिल करने वाली भी मैं पहली लड़की हूं। आठवीं तक का स्कूल नजदीक था, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए रोजाना 18 किलोमीटर दूर जाना और आना पड़ता था।

स्कूल टाइम पर पहुंचने के लिए सुबह होने से पहले अंधेरे में जाना पड़ता था। तब मेरी मां मेरे साथ चलती थी। जैसे ही सुबह हो सूरज निकलने के बाद मम्मी वहां से चली जाती थी और मैं अकेले स्कूल पैदल जाती थी। मेरे जीवन में संघर्ष आए उसका मुझे दुख नहीं है। हर इंसान के जीवन में संघर्ष होता है। जब वह ठान ले तो सफलता हाथ लग ही जाती है।

हेमलता कहती हैं, मेरे गांव में करीब 7 हजार की आबादी है, लेकिन महिला थानेदार बनने वाली मैं पहली महिला हूं। इससे पहले गांव में कुछ महिलाएं टीचर हैं। पुलिस में इतने बड़े पद पर पहुंचने वाली मैं पहली महिला हूं।

हेमलता की फर्स्ट से आठवी तक की पढाई सरणू चिमनजी गांव में पढ़ती थी। इसके बाद साल 2007 में 9वीं सरणू स्कूल में एडमिशन लिया। यह स्कूल गांव से 9 किलोमीटर दूर थी। 10वी बोर्ड में साल 2008 में की और 52 परसेंट नंबर आए थे। साल 2010 में 12वीं की और 51 परसेंट नंबर आए थे। इसके बाद पढ़ाई छूट गई। कोटा खुला यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की। गांव में ही रहकर पढ़ाई की।

थानेदार हेमलता बताती हैं कि मेरी दादी का देहांत होने के बाद मार्च 2008 में महज 17 साल की उम्र में मेरी शादी पास ही के गांव उंडू में चुन्नीलाल के साथ कर दी गई। शादी के चार साल बाद यानी 10 मार्च 2012 एक बेटी का जन्म हुआ। उस समय तक मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैं क्या कर रही हूं।

मैंने कई बार अपनी छूटी हुई पढ़ाई पूरी करने का सोचा। गांव वाले और परिवार वालों ने खूब ताने मारे की अब तू पढ़कर क्या करेगी। तेरे को घर से बाहर नहीं जाना। घर का काम ही करना है। मैंने मेरे सपने को पूरा करने के लिए ठान रखी थी। अब वही ताने मारने वाले लोग मेरी तारीफ करने के साथ-साथ मेरा स्वागत कर रहे हैं।

हेमलता ने बताया कि बेटी होने के चार माह बाद ही मेरा सिलेक्शन बतौर आंगनवाड़ी एक्टिविस्ट गांव में ही हो गया था। इससे मुझे बड़ा सपोर्ट मिला। साल 2012 से लेकर 2020 तक मैंने महज 3500 रुपए महीने की सैलरी पर नौकरी की। पति खेतीबाड़ी का काम करते थे। इस दौरान बेटी को पालने के साथ-साथ खुद भी पढ़ाई जारी रखी। घर की जिम्मेदारियों को पूरा करते करते कोटा ओपन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरी की। तीन साल की ग्रेजुएशन में मुझे 5 साल लग गए। फिर भी अपना सपना नहीं छोड़ा।

हेमलता बताती हैं कि पुलिस की वर्दी पहनने का इतना जुनून था कि बेटी के जन्म के बाद से ही पुलिस कॉन्स्टेबल की तैयारी शुरू कर दी थी। साल 2015 में हुई कॉन्स्टेबल भर्ती का एग्जाम क्लियर कर लिया था। लेकिन फिजिकल टेस्ट में बाहर निकल गई। इसके बाद बहुत ही मायूस हो गई थी। परिवार व गांव वालों ने खूब ताने मारे और कहा कि बन गई पुलिस वाली। इसके बाद खुद को संभाला। तभी वर्ष 2016 में एसआई की भर्ती निकल आई। मैंने इसे सपना पूरा करने के आखिरी मौके की तरह लिया और जी-जान लगा दी।

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