धर्म

सरदार सरोवर बांध के डुबान क्षेत्र में आ गया प्रसिद्ध कोटेश्वर महादेव मंदिर, कनकधारा मठ में आश्रम व्यवस्था से सभी हुए अभिभूत …

नर्मदा परिक्रमा भाग -18

अक्षय नामदेव। दोपहर के लगभग 3 बज चुके थे। सूरज की तेज धूप ने हम सबका बुरा हाल कर रखा था और अब भूख भी लग रही थी परंतु भोजन बनाने के लिए उचित स्थान नहीं मिल पा रहा था। इसी उहापोह में हम आगे बढ़ते रहे। नारेश्वर से हम जब सुबह निकले तो सिर्फ चाय पी कर ही निकले थे और अब तक हमने भोजन नहीं किया था। इस बीच मां की बात याद आने लगी। वह कहती थी बेटा अपने घर से खाकर निकलो तो दुनिया खाने को पूछेगी, और अपने घर से बिना खाए निकलोगे तो बाहर एक गिलास पानी भी नहीं मिलेगा। मां की बात हमेशा सही ही उतरती रही है। हम आगे बढ़ते ही जा रहे थे। डभोई, छोटा उदयपुर, अलीराजपुर हम पार कर चुके थे। अब तो शाम होने को आ रही थी। हम समझ गए कि आज भोजन शाम को ही होगा। परंतु कहां? यह तो मां नर्मदा ही तय करती है,, .। यह मां नर्मदा का महात्म्य है मां के तट पर कोई भी परिक्रमा वासी भूखा नहीं सो सकता।

अब हम नर्मदा के उत्तर तट में धार जिले की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। यहां नर्मदा तट का काफी बड़ा हिस्सा सरदार सरोवर बांध में डूब चुका है छोटा उदयपुर का हापेश्वर तीर्थ भी सरदार सरोवर बांध में डूब चुका है इसलिए परिक्रमा का मार्ग कुछ विचलित हो गया है और हमारे आगे चल रही दो गाड़ियां काफी आगे निकल गई थी। शाम और ज्यादा गहराने लगी और हमें रात्रि विश्राम के लिए उचित स्थान तलाश करना था। अब हमारी संख्या 14 से 4 हो चुकी थी। हमारे 10 परिक्रमा वासी साथी आगे की दो गाड़ियों में थे कामता से बात हुई तो पता चला कि वे काफी आगे निकल चुके हैं।

हमने मार्ग में रुक कर एक जगह पूछा कि क्या परिक्रमा वासियों के रुकने की कहीं उचित जगह है? वहां हमें बताया गया कि आगे 10 किलोमीटर में मुख्य मार्ग निसरपुर गांव है वहां से दांहनी और जाने पर नया कोटेश्वर मिलेगा वहां कनकधारा मठ में आपके रहने की व्यवस्था हो सकती है। उबड़ खाबड़ घुमावदार रास्ते को पार कर हम एक पहाड़ी के नीचे पहुंचे वहां ऊंची पहाड़ी पर मंदिर था। कुछ लोग वहां खड़े थे। नर्मदे हर कहकर हमने कनकधारा मठ कोटेश्वर का पता उनसे पूछा। उन्होंने नर्मदे हर कहकर हमारा अभिवादन स्वीकार किया और बताया कि आप थोड़ा आगे आ गए पीछे लौटिये। जो लाइट वाली जगह दिख रही है वही कनकधारा मठ है।

हम वापस लौटने लगे तथा बताई गई लाइट वाली जगह की तरफ मुड़ गए। तब तक पूरी तरह शाम ढल गई थी अंधेरा हो गया था। वहां अंधेरे में ही देखा कि मठ के प्रवेश द्वार में ही विशाल गौशाला है जहां सैकड़ों गाय बंधी हैं और अनेक साधु उन गायों की सेवा में लगे हुए हैं। मठ के परिसर में और आगे जाने पर दाहिनी ओर मठ के मुख्य महात्मा अपनी कुटिया में बैठे थे। उनके पास कुछ और लोग बैठे थे जो पास के ही गांव के आश्रम से जुड़े भक्त थे। हमने महात्मा को नर्मदे हर कहा और वहां बैठ गए। हमारी वेशभूषा समझ कर बाबा तुरंत समझ गए ये परिक्रमा वासी हैं। हमने कहा बाबा आज रात्रि यही विश्राम करना चाहते हैं। बाबा ने कहा की कितनी मूर्ति है आप लोग? हमने कहा पांच। ठीक है रुक जाइए। उन्होंने कुटिया के समक्ष टीन से बने विशाल शेड की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहां अपना सामान रख दीजिए। उन्होंने कहां चाय पिएंगे? हमने मौन स्वीकृति दी। बाबा ने अपने शिष्य को आदेश दिया उसने हमें चाय ला कर दी। चाय पी कर हम बाबा की बताएं जगह पर रुकने चले गए।

वहां जाकर देखा तो हम आश्चर्यचकित रह गए। उस विशाल टीन शेड के प्रांगण में पूरा आश्रम मंदिर सजा हुआ था। एक ओर ब्रह्मलीन महात्मा कमल दास की विशाल मूर्ति तो दूसरी ओर भगवान कृष्ण और राधा। हरे रामा हरे कृष्णा, सीताराम सीताराम, की धुन धीमी आवाज में आश्रम में गूंज रही थी। उस विशाल शेडनूमा हाल में दाहिनी ओर अनेक साधु महात्मा अपना आसन जमाऐ संध्या वंदन कर रहे थे। उन्हीं के आसपास अनेक परिक्रमा वासी भी अपनी चटाई बिछाए आराधना की मुद्रा में थे। वही बायें ओर भोजन कक्ष और रसोई बनी हुई थी। एक बड़े शेड के नीचे सब कुछ था। नर्मदा तट पर स्थित कोटेश्वर महादेव कनकधारा मठ के सरदार सरोवर में डूब जाने के बाद विस्थापन के बाद का दृश्य था यह।

तभी अचानक मठ के घंटा घड़ियाल बजने लगे। संध्या आरती शुरू हो गई। एक युवा साधु बहुत उत्साह से आरती धूप लेकर गुरुजी और राधा कृष्ण भगवान तथा माता की पूजा मंत्रोचार के साथ कर रहा था। बाकी साधु भी उसके मंत्रों के साथ लय मिला रहे थे। साधु परंपरा की पूजा आरती का क्या बखान किया जा सकता है? दिनभर की जैसे थकान ही दूर हो गई। मन आध्यात्मिक उत्साह से भर गया।

हमने एक ओर अपनी चटाई बिछाकर अपना सामान व्यवस्थित कर लिया। स्नान कर हमने भी संध्या आरती पूजन किया। तब तक रात के 8 बज चुके थे और भोजन की घंटी लगी। मठ के मुख्य महात्मा अयोध्या दास महाराज भी अपनी कुटिया से चलकर वहां भोजन करने आए। उनका आसन अलग लगाया गया। एक साधु ने बताया कि बर्तन वाली जगह से अपनी थाली और गिलास उठाकर पंगत में बैठना है। उनके कहने के बाद हम थाली गिलास लेकर पंगत में बैठ गए। हमारे साथ पंगत में 10 से ज्यादा साधु एवं उतने ही परिक्रमा वासी थे। मूंग की दाल और रोटी परोसी गई। साधुओं ने जोरदार मंत्रोचार किया तब भोजन प्रारंभ हुआ। मंदिर आश्रम में बनाया गया भोजन प्रसाद हो जाता है। प्रसाद खाने से मात्र से ही सात्विकता का बोध हो रहा था। परसने वाले साधु बार-बार रोटी राम एवं दाल प्रसादी कह कर आवाज लगा रहे थे तथा आग्रह पूर्वक तरस रहे थे। मैंने मन भर दाल एवं रोटी खाई। दिनभर हमने कुछ विशेष नहीं खाया था इसलिए रात को दाल एवं दो रोटी बहुत अच्छी लगी।

सब एक साथ उठे और अपनी अपनी थाली राख से धोकर बर्तन वाली जगह पर रखने लगे। हमने भी वही किया। महात्मा ने हमें बताया कि जिस स्थान पर थाली रख कर भोजन करते हैं उसी स्थान पर चौका मारना चाहिए सो हमने उनके आदेश का पालन कर चौका मारा और विश्राम की तैयारी करने लगे। तभी रसोई से एक साधु एक बाल्टी गर्म दूध लेकर निकला और दूध प्रसाद कहकर आवाज लगाने लगे। सभी गिलास लेकर अपना अपना दूध ले आए। परिक्रमा के दौरान कई दिन बाद दूध पीना अच्छा लग रहा था।

आश्रम के महात्मा अयोध्या दास महाराज सोने के पूर्व हमारे पास आए कहने लगे। सुबह उठकर कोटेश्वर महादेव दर्शन करने चले जाना यहां से 7 किलोमीटर दूर है। पहले हमारा यह मठ वही कोटेश्वर महादेव में था परंतु सरदार सरोवर बांध के डुबान में आ जाने के कारण हमें वह स्थान छोड़कर यहां आना पड़ा। पानी तेजी से बढ़ने के कारण बहुत जल्दी जल्दी में हमने यहां इतनी व्यवस्था की है कुछ सामान ला पाए कुछ वहीं पड़े रह गया। अचानक कुछ सोचते हुए वे अतीत की यादों में खो गए फिर बोले अभी पानी कम होने के कारण कोटेश्वर महादेव का दर्शन किया जा सकता है। हमने कहा महाराज। जरूर जाएंगे हम कोटेश्वर महादेव का दर्शन करने।

रात में हमें कब नींद आ गई पता ही नहीं चला और सुबह 4 बजे से ही साधुओं के स्नान ध्यान का क्रम शुरू हो चुका था। सुबह लगभग 5:30 बजे हम भी उठ गए। कनकधारा मठ में सुबह का नजारा बड़ा सुंदर लग रहा था। मैं उठ कर गौशाला की ओर चला गया देखा तो वहां मठ के मुख्य महंत अयोध्या दास महाराज खुद साधुओं के साथ गायों की सेवा में लगे हुए हैं। गायों की सेवा, सानी, भूसा पानी एवं गौशाला की सफाई वे अपने निगरानी में ही कराते हैं तथा खुद भी करते हैं। मैंने उनकी गौ सेवा का साक्षात दर्शन किया। आश्रम में इतनी बड़ी संख्या में गाय पाल कर उनके भोजन आवास का प्रबंध करना कोई हंसी खेल नहीं है। गौ सेवा करना हमारे परिवार की भी परंपरा रही है इस परंपरा को मां नर्मदा गौ सेवा केंद्र बंधी पेंड्रा के माध्यम से मेरे बड़े भाई संजय भैया एवं छोटे भाई अखिलेश भैया आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। बचपन से गौ सेवा से जुड़े होने के कारण मैं गोपालन की व्यावहारिक कठिनाइयों से अवगत हूं इसलिए मुझे यहां आश्रम में गौशाला देखकर महात्मा के प्रति आत्मिक श्रद्धा हो रही थी।

गौशाला की ओर से लौटकर मैं और तिवारी भी दैनिक क्रिया से निवृत्त होने चले गए। निरुपमा एवं मैकला नहा धोकर मां नर्मदा के पूजन आरती में जुटे हुए थे। जब हम स्नान कर वापस लौटे तब तक आश्रम में चाय की घंटी लग चुकी थी। जिस आश्रम में गौशाला हो वहां की चाय का क्या कहना?

चाय पीने के बाद हम नर्मदा तट पर स्थित कोटेश्वर महादेव तीर्थ का दर्शन करने चले गए। जिस कनकधारा मठ में हम रुके थे वह नया कोटेश्वर है तथा आसपास भी वहां विस्थापितों को बसाया गया है। नया कोटेश्वर पारकर लगभग 6 किलोमीटर चलने पर हमें नर्मदा का तक दिखाई देने लगा था साथ ही हमें आसपास के भौगोलिक परिवेश, सूखे पेड़, गीली दलदली भूमि तथा सड़कों की स्थिति देखकर अंदाजा हो गया कि हम अभी जिस रास्ते पर चल रहे हैं वह डुबान क्षेत्र है।

कुछ और आगे जाने पर हम नर्मदा तट पर पहुंच गए। वहां मंदिरों के समूह दिख रहे थे पूजन सामग्री की दुकानें सजी होने के कारण आसपास का वातावरण धार्मिक दिखाई दे रहा था। हमने सर्वप्रथम कोटेश्वर महादेव मंदिर में जाकर उनका पूजन अर्चन एवं जलाभिषेक किया। रुद्राष्टक एवं नर्मदा अष्टक का पाठ करने के बाद हम वहां अन्य मंदिरों में भी गए। जिन मंदिरों का हम वहां दर्शन कर रहे थे वह सब बरसात होने पर बांध के पानी में डूब जाते हैं। मंदिरों की जर्जर हो रही दीवार तथा उन पर जमी काई इत्यादि हमें इसका भास करा रही थी फिर

नर्मदा नदी के तट पर गए और देर तक वहां बैठकर मां नर्मदा का दर्शन करते रहे। आसपास के मकानों को देख कर भी डुबान का दर्द साफ नजर आता है। मां नर्मदा नदी के तट एवं बांध के तट का अंतर भी हमने वहां बैठकर महसूस किया। जहां हम बैठे थे दरअसल वह नदी का तट ही था पर वह अब बांध का तट था इसलिए वहां पानी की गहराई एवं गंभीरता कुछ अलग थी। काफी देर बैठे रहने के बाद हम ऊपर आ गए वहां मां नर्मदा घाट निर्माण एवं संरक्षण समिति निसरपुर तहसील कुक्षी जिला धार मध्य प्रदेश के पदाधिकारी भी मिले जो वहां घाटों के संरक्षण एवं निर्माण, मुक्तिधाम के लिए काम कर रहे हैं। वे इस निमित्त सहयोग राशि भी ले रहे थे तथा सहयोग राशि देकर रसीद दे रहे थे। हमने अरपा उद्गम बचाओ संघर्ष समिति पेंड्रा छत्तीसगढ़ के नाम से वहां कुछ सहयोग राशि जमा कर रसीद प्राप्त की।

कोटेश्वर महादेव तीर्थ का दर्शन कर हम फिर से वापस कनकधारा आश्रम वापस आ गए तथा वहा साधुओं के साथ बैठकर सत्संग करते रहे। नर्मदा तट पर एक से एक साधु, सन्यासी, तपस्वी, मनीषी हुए हैं उनके पास ज्ञान का अपार भंडार है। अलग-अलग साधुओं के अलग-अलग अनुभव, गुण तथा अलग-अलग जानकारी। हमें उनके साथ सत्संग कर अच्छा लग रहा था।वहां एक 80 साल के बुजुर्ग विकलांग साधु मिले जो बीते 25 साल से उस आश्रम में सेवारत है। कुछ साधु परिक्रमा पर थे जो स्थान अच्छा होने के कारण कुछ दिन से वहां रुके हुए थे। एक साधु एक पैर से विकलांग थे जो पूरे भारत की साईकिल से परिक्रमा कर चुके थे तथा अब नर्मदा परिक्रमा पर हैं। एक साधु औषधियों के जानकार थे। बातचीत और ज्ञान मैं तो सभी साधु श्रेष्ठ ही थे।

12 बजे के लगभग भोजन प्रसाद की घंटी लगने पर हम सभी अपनी अपनी थाली लाकर पंगत पर बैठ गए। भोजन परोसने के बाद भोजन मंत्र हुआ तब भोजन प्रारंभ किया गया।भोजन परोसने वाले साधु बहुत फुर्ती से बार-बार भोजन सामग्री मनुहार पूर्वक परोस रहे थे। भोजन उपरांत मट्ठा परोसा गया। भोजन प्रसाद ग्रहण करने के बाद हमने वहां के महात्मा से आशीर्वाद प्राप्त कर बिदा ली तथा आगे की परिक्रमा में निकल गए।नया कोटेश्वर स्थित कनकधारा मठ में 18 घंटे रुक कर हमने आश्रम एवं साधुओं की जीवन पद्धति का साक्षात दर्शन किया। जय हो भारत के साधु-संतों की। जय हो सनातन धर्म की। जय हो नर्मदा मैया की।

 

 क्रमशः

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