छत्तीसगढ़रायपुर

छत्तीसगढ़ के पारंपरिक हरेली तिहार के लिए सी मार्ट में गेड़ी बिक्री के लिए उपलब्ध….

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ की परंपरा, तीज त्यौहार, बोली, खान पान के सम्मान में हर संभव कोशिश की है। इस बार 17 जुलाई को छत्तीसगढ़ में हरेली तिहार मनाया जायेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में गेड़ी के बिना हरेली तिहार अधूरा है। बच्चों के लिए बाजार में गेड़ी बिक्री का प्रचलन स्थान विशेष में होता था। अब राज्य शासन के वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने लोगों तक गेड़ी की उपलब्धता के लिए धमतरी शहर के नगरी रोड में स्थित सी मार्ट में गेड़ी बिक्री की व्यवस्था की है। सी मार्ट से इच्छुक व्यक्ति गेड़ी खरीद सकते हैं। वनमण्डलाधिकारी मयंक पाण्डेय ने बताया कि गेड़ी की कीमत मात्र 50 रूपये है। इसके साथ ही ग्रामीण अंचलों में वन विभाग के वन परिक्षेत्राधिकारी कार्यालय में भी गेड़ी विक्रय के लिए रखीं गईं हैं, जहां से ग्रामीण गेड़ी क्रय कर सकते हैं

परंपरा अनुसार वर्षों से छत्तीसगढ़ के गावों में अक्सर हरेली तिहार के पूर्व बढ़ई के घर में गेड़ी का ऑर्डर रहता था और बच्चों के जिद पर अभिभावक जैसे-तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। अब सी मार्ट में गेड़ी बिक्री के लिए उपलब्ध होने से अभिभावक भी मनपसंद गेड़ी खरीद सकते हैं और पहले की अपेक्षा और अधिक हर्षाेल्लास से त्यौहार मना सकते हैं।

गेड़ी चढ़कर ग्रामीण-जन और कृषक-समाज वर्षा ऋतु का स्वागत करता है। वर्षा ऋतु में गांवों में सभी तरफ कीचड़ होता है, लेकिन गेड़ी चढ़कर कहीं भी आसानी से आया-जाया जा सकता है। गेड़ियां बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबरी दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उसे दो भागों में बांटा जाता है, उसे रस्सी से फिर से जोड़कर दो पउवा बनाया जाता है। यह पउवा असल में पैरदान होता है, जिसे लंबाई में पहले काटे गए दो बांसों में लगाई गई कीलों के उपर बांध दिया जाता है।  गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती है, जो वातावरण को और आनंददायक बना देती है ।

गांव में लगभग सभी की जमीन होती है और वे किसान हैं। हरेली तिहार के दिन सुबह से ही तालाब के पनघट में किसान परिवार बड़े बुजुर्ग बच्चे सभी अपने गाय बैल बछड़े को नहलाते हैं और खेती किसानी औजारों हल, कुदाली, फावड़ा को भी साफ कर घर के आंगन में पूजा के लिए सजाते हैं। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं।  कृषि औजारों को धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला का भोग लगाया जाता है। अपने अपने घरों में आराध्य देवी देवताओं के मान्यता के अनुसार  पूजा करते हैं। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण करते हैं।

गांव के किसी स्थल में शाम को गुरु के सानिध्य में हल्के मंत्र साधना करने वाले गांव के सभी चेला, झांज, मंजीरा, ढोलक, गीत आदि गुरु के साथ कनेर के डंगाल और फूलों से सजे नवनिर्मित स्थल में पूजा करते हैं,  जिसे ’नागमथ’ के नाम से जाना जाता है। गांव के सभी इच्छुक बड़े बुजुर्ग, बच्चे, युवा, बालक, बालिका, महिला, पुरुष उपस्थित होते हैं।

इस अवसर में किसी चेला को किसी देवता की सवारी आता है और वो वर्तमान अपनी पहचान से बेसुध गाने और संगीत, ढोलक, मंजीरा के लय के अनुसार आधा घंटा के करीब पूजा स्थल के इर्द गिर्द कई प्रकार के मनोभाव प्रकट करता है, जिसकी जानकारी गुरु और अन्य को जब होती है कि इस देवता की सवारी है, तब उसके सामने उनके पसंद का फल देकर या उस देवता से सबंधित गीत को उन्मादी ऊंचे लय से गाया बजाया जाता है तब देवता की सवारी वाले चेला के पीछे दो लोग उसको पीछे से पकड़ने के लिए रहते हैं।

उनको मालूम रहता है कि चेला गाने के हिसाब से ऊंचे लय के संगीत के समय झुके हुए दोनो हाथ पैर या बैठे हुए मुद्रा से ऊपर की ओर उठते हुए पीछे की ओर गिरेगा। बेसुध चेला के कानो में गुरु या अन्य वरिष्ठ साधकों द्वारा मंत्र सुनाया जाता है, जिससे वह अपने पुराने अस्तित्व में सामान्य हो जाता है और पूजा कर गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करता है। यह प्रदर्शन सावन माह में ही गुरु के सान्निध्य में दूसरे अवसर में भी किया जाता है।

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