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अजीत जोगी ने अपनी आत्मकथा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सफल और विश्वसनीय नेता बताया …

रायपुर। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कोरोना काल में आत्मकथा लिख रहे थे, जो जल्द ही प्रकाशित होने वाला है। इसमें उन्होंने बचपन से लेकर IAS की नौकरी और राजनीति पर बातें लिखी है। अजीत जोगी के निधन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी पत्र विधायक व उनकी धर्मपत्नी डा. रेणु जोगी के पास आया। इस पत्र के मिलने के बाद पुत्र अमित जोगी ने ‘आत्मकथा’ के कुछ अंश को साझा करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री मोदीजी के प्रति मेरे पिताजी की क्या भावनाएं थी। उसे मैँ उनके ही शब्दों में व्यक्त कर रहा हूं …

“मैं इसे भी अपना सौभाग्य मानता हूं कि जब मैं कांग्रेस का मुख्य प्रवक्ता था तो मेरे साथ ही भाजपा के दो अत्यन्त वरिष्ठ नेता वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज भाजपा के मेरे समकालीन प्रवक्ता थे। उन दिनों टेलीविजन के चारों चैनलों में हमारी जोरदार बहस हुआ करती थी पर कई बार एकसाथ टेलीविजन स्टूडियो द्वारा भेजी गई कार में हम लोगों को एकसाथ आना पड़ता था और डिबेट के पहले और बाद हम लोगों में बड़े अंतरंग पारिवारिक संबंध बन गये थे। मैं इसे नरेन्द्र मोदी का बड़प्पन मानता हूं कि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कभी मुझसे यह प्रेम संबंध नहीं तोड़े। वे बड़े सफल और विश्वस्तरीय नेता बन गये हैं और एक ही उदाहरण उनकी उदारता को प्रमाणित करने के लिये पर्याप्त होगा।

जब 2014 में वो प्रधानमंत्री बने तो कांग्रेस पार्टी के बहुत से नेताओं को शासकीय आवास किसी न किसी बहाने से आवंटित किया गया था। स्वाभाविक कारणों से वे सभी शासकीय आवास के आवंटन निरस्त किये गये और सभी को अपनी अलग से व्यवस्था करनी पड़ी। कांग्रेस संगठन की जवाबदारियों के कारण मुझे दिल्ली में रहना अनिवार्य था और स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं दिल्ली में मंहगे किराये के मकान में रह सकूं।

मेरे सौभाग्य और संयोग से उन्हीं दिनों संसद भवन की आउटर गैलरी में मैं अपनी व्हील चयेर चलाता हुआ जा रहा था कि दूसरी ओर से तमाम सुरक्षा कवच से भरे हुये प्रधानमंत्री आ रहे थे। दूर से उन्हें देखकर सम्मान देने की दृष्टि से मैंने अपनी व्हील चेयर अत्यन्त किनारे कर ली और उनके निकलने का इंतजार करने लगा। उनकी पैनी नजर दूर से ही मेरे पर पड़ गई और सीधे सुरक्षा कवच को चीरते हुये मेरे पास तक आये और मेरी व्हील चेयर पर अपने हाथों से पकड़कर भरे प्रेम से मेरा और मेरे परिवार का हालचाल पूछा। हम दोनों प्रवक्ताकाल में एक-दूसरे को भाई साहब कहा करते थे। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि उन्होंने मुझे भाई साहब कहकर मुझसे बातचीत की।

न जाने क्यों मुझे लगा कि मैं आवास के बारे में अपनी कठिनाई उन्हें बताऊं और मेरे मुंह से निकल पड़ा कि भाई साहब, आप प्रधानमंत्री बन गये हैं और मेरे जैसा व्यक्ति आवास के लिये आपके रहते हुये भी दर-दर भटक रहा है। उनके बड़प्पन की पराकाष्ठा थी कि उन्होंने इस संबंध में मुझे कोई आश्वासन नहीं दिया। मुझे लगा कि वे टालकर चले गये। देर शाम मुझे उनके प्रमुख सचिव और सीनियर आईएएस नृपेन्द्र मिश्रा का फोन आया और मुझसे कहा कि प्रधानमंत्री ने उन्हें आदेशित किया है कि तत्काल नार्थ या साऊथ ऐवेन्यू में मेरी सुविधानुसार आवास आवंटित किया जाय। स्वाभाविक रूप से दूसरे ही दिन मनचाहा आवास मिल गया और उसे खाली करने के लिये कोई नोटिस नहीं मिला…”

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