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खराब मौसम में भी डायवर्ट नहीं होंगे विमान, अब लैंडिंग के लिए दूसरे एयरपोर्ट की नहीं पड़ेगी जरूरत ….

रांची। रांची एयरपोर्ट के निदेशक केएल अग्रवाल ने कहा, ‘रांची एयरपोर्ट पर फिलहाल यह आईएलएस तकनीक की सुविधा नहीं है। यहां विमानों की सुरक्षित लैंडिंग कराने के लिए आईएलएस सिस्टम लगाए जा रहे हैं। इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। नवंबर के अंत तक इसे लगा लिया जाएगा। इसके स्थापित हो जाने से यहां खराब मौसम और कुहासे के दौरान भी विमानों की लैंडिंग हो सकेगी।’

खराब मौसम के कारण बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर आने वाले विमान अब दूसरे एयरपोर्ट की ओर डायवर्ट नहीं होंगे। रांची एयरपोर्ट नवंबर के अंत तक अत्याधुनिक इंस्ट्रूमेंटल लैंडिंग सिस्टम (आईएलएस) तकनीक से लैस हो जाएगा। इसके लग जाने के बाद बेहद खराब मौसम में भी विमान रांची एयरपोर्ट पर आसानी से उतर सकेंगे। इससे देश-विदेश से रांची आ रहे यात्रियों को काफी राहत मिलेगी।

मौजूदा समय में पुरानी आईएलएस तकनीक खराब हो चुकी है। इससे खराब मौसम और पुअर विजिबिलिटी के दौरान विमानों की लैंडिंग में परेशानी हो रही है। कम विजिबिलिटी होने पर रांची उतरने वाले विमानों को मजबूरन नजदीकी एयरपोर्ट पर जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यहां 12 से 1500 मीटर की विजिबिलिटी होने पर ही विमानों की लैंडिंग हो रही है। 1200 मीटर से कम की विजिबिलिटी होने पर विमान डायवर्ट हो रहे हैं।

एयरपोर्ट अधिकारियों के अनुसार विभिन्न श्रेणी के विमानों की लैंडिंग के दौरान लिए अलग-अलग मानक निर्धारित हैं। इस सिस्टम के लैस हो जाने से 800 से हजार मीटर की विजिबिलिटी (दृश्यता) होने पर भी विमान की सुरक्षित लैंडिंग हो सकेगी। गत 12 अगस्त को रांची एयरपोर्ट पर इसी कारण कई विमान कोलकाता, पटना के लिए डायवर्ट कर दिए गए थे। मौसम साफ होने के लिए घंटों इंतजार करने के बाद विमान यात्रियों को लेकर रांची आए। जाड़े के दौरान दिसंबर जनवरी के मध्य झारखंड में भी कुछ दिनों का कुहासा पड़ता है। इसका असर रात और अहले सुबह अधिक होता है। इस दौरान आवाजाही करनेवाली विमान सेवाएं भी बाधित होती हैं।

अधिकारियों के मुताबिक रनवे के पास लगने वाले इस तकनीक के सहारे विमान रेडियो तरंग के माध्यम से रनवे पर उतरता है। इस सुविधा से विमान को मार्गदर्शन के लिए सटीक दिशा की जानकारी मिलती है। दो रेडियो बीम नियोजित करता है। इसमें एक लोकलाइजर जो मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह रनवे के सेंट्रल लाइन निर्धारित करता है। जबकि ग्लाइडलोप यह निर्धारित करता है कि विमान को रनवे के किस हिस्से और इसके छोर से कितनी दूरी पर लैंडिंग (उतरना) करना है।

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