तड़प …
दुआएँ नहीं चाहिए तुम्हारी
अब मुझे अपने लिए
हो सके तो
दुआएँ मॉगो ख़ुद के लिए
मेरी मुश्किलों की मत कर परवाह
साईं खड़ा है हाथ थामें
पतवार है साईं मेरे
लगाएँगे मेरी नौका किनारे ।
दुखी हूँ केवल
पिता के लिए
संदेश देने लगे हैं और
सलाह दने लगे
निष्ठुर होने के लिए
अपनो ने इतने दुख दिए
कि कहने लगे हैं पापा
अब कहीं का नहीं रहा मैं
मेरी भावनाओं को
लूट कर
दोस्त ,रिश्तेदार ,
भाई-बहन, भतीजे भतीजी चले गए अपनी राहों पर
किसी ने मुड कर नहीं कहा
अपने बच्चों का भी
ख़याल कर
उनके भविष्य का
कुछ सोच और विचार कर
और अब कहने लगे हैं लोग
कि तुम्हारे बच्चों में है कमी
पापा की आत्मा तड़प उठी
और कहने लगी
कमी मेरे बच्चों में नहीं
मुझमें थी
काश मैं केवल
पिता और पति ही रहता
क्या ज़रूरत थी मुझे
विशाल ह्रदय रखने की ।
मैं सिर्फ़ इतना जानतीं हूँ
कि हूँ मैं वो नाविक
तूफ़ानों से घिरी
मँझधार में है किश्ती मेरी
खेऊगी भी ख़ुद ही
ना लूँगी सहारा किसी भी बैसाखी का
बस थामे रखूँगी हाथ
साईं का
ईश्वर कुछ करिश्मा करे
पापा का विश्वास फिर से
जाग उठे
ना फिर
कहने की हो ख्वाहिश उनकी
कि ,हमसे वो कहे
निष्ठुर बन जाना हर हाल में
तुम सभी
भावनाओं को ताला लगा कर ,दफ़ना देना,और
गहरे गाढ़ देना ज़मीन में कहीं
आहें कभी ख़ाली नहीं जाती
जब दुआएँ है तो बद्दुआएँ
भी तो होगी
आज तुम्हारे सुकून के दिन है
कल की तड़प तुम्हारी आने वाली नस्लों को सहनी होगी
©सावित्री चौधरी, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश