लेखक की कलम से

मसला मुस्लिम आबादी का …

क्या माजरा है? वर्षों तक मलाईदार सरकारी पदों पर मौज लेते मुसलमान कार्मिक, रिटायर होते ही अपने फिरके की ”बदहाली” पर रोना चालू कर देते हैं! पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त मियां शाहबुद्दीन याकूब कुरैशी, (आईएएस, 1971) ने अपनी नयी किताब ”पोपुलेशन मिथ : इस्लाम एण्ड फैमिली प्लानिंग एण्ड रेलिजन” में लिखा है कि : ”इस्लाम परिवार नियोजन की अवधारणा का विरोध नहीं करता है और भारत में मुस्लिम सबसे कम बहुविवाह करने वाला समुदाय है।”

लेकिन कुरैशी साहब निखालिस भारतभक्त हैं। उन्हीं का सुझाव था कि चाणक्यपुरी के शांतिपथ का नाम ”दलाई लामा मार्ग” रख दो। कम्युनिस्ट चीन का दूतावास इसी रोड पर है। मकसद चीन को चिढ़ाना है।

कुछ समय पूर्व​ मियां मोहम्मद हामिद अली अंसारी दस वर्ष तक उपराष्ट्रपति पर रह कर जुदा हुये थे। मौलाना आजाद रोड पर पौने सात एकड़ के विशाल भूभाग पर निर्मित उपराष्ट्रपति आवास में पति—पत्नी ने दशकभर सुखी दांपत्य जीवन बिताया। आजकल जनपथ के विशाल सरकारी बंग्ले (सोनिया गांधी के दस नंबर के निकट) में निशुल्क निवास वे कर रहे हैं। उन्हें भी रिटायर होते ही लगा था कि भारतीय मुसलमान बड़े दर्द में हैं। मायूस हैं। बेचारा एक अकेला देशभक्त कश्मीरी सुन्नी गुलाम नबी आजाद ही बचा था जो जोरों से कहता भी है कि : ”दुनिया में केवल भारत में ही जहां मुसलमान सुकून से रहता है।” वर्ना सीरिया, ईरान, फिलिस्तीन का मंजर सामने है, जहां मुसलमान अपने बिरादार के लहू से नहाता है।

कुरैशी साहब की भ्रामक अवधारणा को सच की कसौटी पर कसें। हर दशक में हो रही जनगणना की सरकार रपट के आंकड़े देखें :  साल 2011 की जनगणना के अनुसार हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर 16.7 प्रतिशत रही, जबकि साल 2001 की जनगणना में 19.92 फीसदी थी। साल 2011 की जनगणना में मुसलमानों की आबादी में वृद्धि दर 19.5 प्रतिशत रही। फिर बढ़ती रही। कारण रहा कि बच्चे नूर है, नेमत है। आंकड़े स्पष्ट हैं।

पाकिस्तान में आज केवल 2.14 फीसदी हिन्दू रह गये। जबकि विभाजन के समय तेरह प्रतिशत थें। करीब पचास लाख सिख ओर हिन्दू भागकर भारत आ गये। पिछले दो दशकों (2001) में भारत में 13.8 करोड़ मुसलमान थे। अब इस्लामी सूत्रों के अनुसार पैंतीस करोड़ हैं। हालांकि अमेरिकी शोध संस्थान प्यू रिसर्च सेण्टर ने तीन वर्ष पूर्व रपट पेश की थी कि अगले 19 वर्षों में भारत में मुस्लिम आबादी और बढ़ेगी।

इसी शोधकार्य में बताया गया है कि विश्व जनसंख्या में 2070 तक ईसाईयों से कहीं अधिक मुसलमान हो जायेंगे। अर्थात उसमें 73 प्रतिशत बढ़ोत्तरी होगी।

तब दुनिया में इस्लाम मतावलम्बी शीर्ष पर रहेंगे। विश्व में अधिकतम मुस्लिम आबादी इंडोनशिया में है, बाईस करोड़, 87 प्रतिशत। सबसे कम, तीन करोड़ बासठ लाख ईराक में। यहां केवल एक प्रतिशत गैर—मुस्लिम ही है। पिछले सप्ताह पोप फ्रांसिस बगदाद गये थे। शिया धर्मगुरु से भेंट की। यहां इस्लाम ने ईसाईयों को पीछे छोड़ दिया है।

अत: भारत में इस बढ़ती मुस्लिम आबादी के गंभीर आर्थिक तथा राजनीतिक परिणाम आशंकित हैं। अभी बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ। हैदराबाद का असदुद्दीन ओवैसी सीमावर्ती क्षेत्र से पांच विधायक को जिता ले गया। बिहार के चम्पारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, पूर्णिया आदि जनपद इस्लाम के गढ़ माने जाते हैं। किशनगंज संसदीय क्षेत्र से अक्सर मुसलमान ही जीतता रहा है।

अभी अगले माह पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने वाले है। मालदा, दीनाजपुर, मुर्शीदाबाद और वीरभूम मुस्लिम—बहुल क्षेत्र हैं। यहां ओवैसी और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ही मैदान में दिखते  हैं। इन्हीं इलाकों में मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग चलायी थी। गनीमत थी कि इस्लाम पर बने पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्ला देश को मजहब से अलग कर निरपेक्ष  स्थान दिया। पंजाबी—नियंत्रित पाकिस्तान से वह आजाद हो गया। जिन्ना का इस्लामी मिथक छितर—बितर गया। यही हालत रही तो शीघ्र ही सिंध और बलूचिस्तान भी गणराज्य बन जायेंगे। बस लाहौर और रावलपिण्डी बचेंगे।

किन्तु चिंता भारत को है। अब मजहब के आधार पर एक और विभाजन भारत बर्दाश्त नहीं कर पायेगा। अत: इन सेवानिवृत्त अधिकारियों को ”इस्लाम खतरे” में है का नारा फिर बुलन्द नहीं करना चाहिये। जैसे सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान हिन्दुस्तान के मुसलमानों से कहते थे : ”हिन्दुओं के साथ रहना सीखों।” अवध से कराची हिजरत कर गये मुसलमान आज अपने पुरखों की मजार पर लौटना चाहते हैं। उनके नेता अलताफ हुसैन ने ऐलान भी किया था। वर्ष 2000 के 17 सितंबर के दिन लंदन के एक्टन सभागार में मोहजिर कौमी मूवमेन्ट के पुरोधा अलताफ हुसैन, बलूचिस्तान के सरदार अताउल्ला खान मैंगल, पख्तून नेता मोहम्मद अचकजाई तथा सिंधी राष्ट्रवादियों ने एक प्रस्ताव में कहा कि ”भारत का विभाजन तथा पाकिस्तान की स्थापना मानव इतिहास की महानतम गलती रही।”

तनिक एक लखनव्वी समाजवादी और मराठी लोहियावादी की राय भारतीय मुसलमानों पर जान लीजिये। अखिलेश यादव ने कहा था कि : ”सुप्रीमकोर्ट मुसलमानों को 4.5 प्रतिशत कोटा देने के मनमोहन सिंह सरकार के फैसले को संवैधानिक मान्यता दे देगा। यदि अदालत इसे संवैधानिक नहीं मानती, तो सरकार को संविधान में संशोधन करके इस व्यवस्था को लागू करना चाहिये।” (अगस्त 2013)।

महाराष्ट्र के मुस्लिम समाज सुधारक लोहियावादी हमीद दलवाई मुस्लिम अल्पसंख्यकवाद के सख्त खिलाफ थे। उनका स्पष्ट कहना था कि :”ऐसे हिन्दू जो मुस्लिमों को अल्पसंख्यक मानते हैं, वे मुसलमानों की मुस्लिम सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं। भारत में हिन्दू बहुसंख्यक है और मुस्लिम अल्पसंख्यक, सांप्रदायिक सोच का ही परिणाम है। लोकतंत्र में मुसलमानों को ही नहीं, किसी भी विशेष समुदाय को समानता का अधिकार प्राप्त है, कोई विशेषाधिकार नहीं।”

संदेशा है। जनाब कुरैशी को बचना चाहिये नये विभाजन के बीज बोने सें।

 

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

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