पुरुष मन…
बाहर से कठोर, अंदर से कोमल मन
नारियल सा होता है पुरुष मन
बेटी के होने पर जश्न मनाता है यह पुरुष मन
बेटी के विदाई पर अश्क़ नहीं बहाता
बस गुमसुम सा हो जाता है पुरुष मन
बेटी को राजकुमारी की तरह पालकर
दहेज के साथ विदा करता है पुरुष मन
एक दिन कुछ यूं हुआ,
उलझन में फंस गया था पुरुष मन
मां बोली बेटा मुझे साड़ी ला देना
पत्नी बोली सुनो जी एक साड़ी चाहिए
पैसे तो एक ही साड़ी के थे
किसकी इच्छा पूरी करता यह पुरुष मन
बेबस होकर गुमसुम बैठ गया पुरुष मन
पत्नी बोली क्या हुआ ?
कुछ नहीं मुस्कुरा कर बोला पुरुष मन
पत्नी बोली सुनो मैं पढ़ लेती हूं आपका मन
वह बोला मां को भी साड़ी….
पत्नी मुस्कुराकर बोली बस इतनी सी बात
ले आना माँ के लिए, मुझे नहीं चाहिए साड़ी
अपने फैसले पर नाज़ कर रहा था पुरुष मन
आज पुरुष मन को नमन करता है यह दिव्य मन।
©दिव्या भागवानी, शिवपुरी, मध्य प्रदेश
परिचय- आकाशवाणी में कार्यरत, साहित्य सम्मान से सम्मानित, कविताएं लिखने का शौक।